Saturday, January 22, 2011

बुझ गई ‘स्वामी’ जी की भट्ठी

-अशोक मिश्र

आज सुबह-सुबह छबीली से चौराहे पर मुलाकात हो गयी। सुनहरी धूप की तरह खिली छबीली खूब सजी-धजी नजर आ रही थी। यह सज-धज किसी जवान स्त्री की नहीं, बल्कि किसी जोगन की तरह थी। उसने माथे पर बड़ा-सा टीका लगाने के साथ किसी स्वामी जी के नाम वाला दुपट्टा ओढ़ रखा था। मैंने हंसते हुए कहा, ‘क्या बात है, ‘साध्वी’ बनने का इरादा है या मेरे प्यार में जोगन? आज से दस-बारह साल पहले जब मैं तेरे साथ जोगी बनकर गली-गली, गांव-गांव घूमने को तैयार था, तब तू भाव ही नहीं देती थी। आज जब एक अदद बीवी घर लाकर बिठा चुका हूं, तो तू मेरे प्यार में जोगन बनने जा रही है?’छबीली ने मुंह बिचकाते हुए कहा, ‘नासपीटे! तू जब भी मुंह खोलेगा, बुरा ही बोलेगा। तेरे प्यार में जोगन बने मेरा ठेंगा। मैं तो स्वामी मुसद्दीलाल का प्रवचन सुनने जा रही हूं। बड़े सिद्ध महात्मा हैं, उनका प्रवचन सुनने से सारे पाप धुल जाते हैं। तू भी मेरे साथ चल और अपने पाप धो ले।’

मुझे छबीली की कमअक्ली पर हंसी आ गयी। मैंने उसे समझाने की नीयत से कहा, ‘पहली बात तो यह है कि मैंने कभी कोई पाप ही नहीं किया है, जिसे धोने की चिंता में घुलता फिरूं। तू भी इन ढोंगी साधुओं के चक्कर में कहां पड़ गयी। ये उस तरह के साधु-महात्मा न होवे हैं, जैसे पहले होते थे। अब तो ज्यादातर संत-महात्माओं में कोई नित्यानंद होता है, तो कोई भीमानंद। कोई भागवताचार्य के वेश में अश्लील सीडी का कारोबार करता है। नाम के साथ या आगे-पीछे ‘आनंद’ शब्द जोड़ लेने से कोई ‘विवेकानंद’ नहीं हो जाता। विवेकानंद बनने के लिए त्याग करना पड़ता है, मोह-माया से विरक्त होना पड़ता है। जिस स्वामी मुसद्दीलाल के तू कसीदे काढ़ रही है, उन्हें मैं जानता हूं। स्वामी मुसद्दीलाल महिला से छेड़छाड़ के जुर्म में दो महीने तक जेल की हवा खा चुका है। पहले यह बस और ट्रेनों में मूंगफली बेचता फिरता था। अब संत बनकर तुम जैसी भक्तिनों को बेच रहा है।’

मेरी बात सुनकर छबीली ने कानों पर हाथ रखते हुए कहा, ‘शिव॥शिव...तू तो पक्का संत विरोधी है। स्वामी मुसद्दीलाल की तुलना तू इन अधर्मियों से करता है। मुझे अब पक्का विश्वास हो गया है, तू मरने पर नरक जरूर जाएगा। तुझे शर्म नहीं आती, ऐसे महान स्वामियों के बारे में दुष्प्रचार करते हुए।’छबीली की बात सुनकर मेरा मन हुआ कि पागलों की तरह हंसता रहूं। लेकिन मैंने अपनी मनोभावना पर काबू करते हुए मजाक के स्वर में कहा, ‘अगर तू मेरी चेली बनने को तैयार हो जाए, तो मैं भी स्वामी बनने को तैयार हूं। सच्ची...अगर मैं स्वामी बन जाऊं, तो भीमानंद और नित्यानंद जैसे स्वामियों की दुकान बंद हो जाएगी। वैसे भी इस धंधे में अपने पास से कुछ नहीं लगाना पड़ता है। बस॥अगर आप थोड़े से हैंडसम हों, महिलाओं और लड़कियों को अपनी बोलचाल से प्रभावित करने की क्षमता रखते हों, तो समझो कि आपकी धर्म की दुकान चल निकली। इसके साथ ही एकाध बड़े नामी-गिरामी देशी-विदेशी चेले-चपाटे हों, तो समझो ‘सोने में सुहागा’ हो गया। इन तथाकथित बड़ों को अपने साथ जोड़ने का मतलब है कि दुकान चलने की गारंटी मिल गई। अब स्वामी नित्यानंद, भीमानंद या अपने ब्रजवासी भागवताचार्य को ही लो, इनके साथ थोक के भाव विदेशी चेले-चेलियां जुड़े हुए थे। ये देशी-विदेशी चेले इन स्वामियों का मुफ्त प्रचार करते थे।’ मैं सांस लेने के लिए पलभर को रुका और फिर चेहरे पर परमहंसी मुस्कान लाते हुए कहा, ‘अगर मैं संत या भागवताचार्य बना, तो विदेश दौरे पर तुझे जरूर ले जाऊंगा। तू मेरी चेली बनेगी?’

मेरी बात सुनते ही छबीली हत्थे से उखड़ गयी। बोली, ‘शीशे में अपना मुंह देखकर आ। चला है संत बनने। तू चेहरे से ही असंत लगता है। संत क्या खाक बनेगा।’ हम दोनों के बीच चल रही प्रेम रस से सराबोर वार्ता आगे बढ़ती कि छबीली के पड़ोस में रहने वाला स्वामी मुसद्दीलाल का प्रमुख चेला अभयानंद दिख गया। उसके मुंह पर हवाइयां उड़ रही थी। उसने पास आकर छबीली से कहा, ‘दीदी...तू आश्रम मत जाइयो। अब प्रवचन नहीं होगा। स्वामी जी को पुलिस तस्करी और बलात्कार के आरोप में पकड़ ले गयी है। लगता है कि स्वामी जी की भट्ठी बुझ गई।’ यह सुनते ही छबीली स्वामी मुसद्दीलाल को गालियां देती घर लौट गई।

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