Wednesday, March 16, 2011

ये क्या हो रहा है?

-अशोक मिश्र

कभी सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने एक फिल्म में गीत गाया था, ये क्या हो रहा है, भाई ये क्या हो रहा है? इसका जवाब यह दिया गया कि कुछ नहीं...कुछ नहीं... बस प्यार हो रहा है। मैंने इस फिल्म को देखा नहीं है। लेकिन गीत के बोल से लगता है कि प्रेमी-प्रेमिका को कुछ ऐसा-वैसा करते पकड़ लेने पर ही उनके मुंह से निकला होगा कि ये क्या हो रहा है? आज हालत यह है कि सुप्रीम कोर्ट पूरे देश से पूछ रही है कि यह क्या हो रहा है और इसका जवाब देने वाला कोई नहीं है। यही सवाल एक दिन सुबह-सुबह मैंने उस्ताद गुनाहगार के घर जाकर पूछा, तो वे झल्ला उठे। उन्होंने भाभी जी से चाय पिलाने का अनुरोध करते हुए कहा, ‘होने को तो बस केवल भ्रष्टाचार हो रहा है, घपले हो रहे हैं, घोटाले हो रहे हैं। महिलाओं और बच्चियों के साथ बलात्कार हो रहे हैं। इसके अलावा कुछ नहीं हो रहा है। तुम और क्या सुनना चाहते हो? सुबह-सुबह राम का नाम लेने के बजाय मेरे मुंह से खराब बातें ही निकलवा रहे हो।’

मैंने उस्ताद गुनाहगार को छेड़ा, ‘आप भी अमिताभ बच्चन की तरह लोगों से पूछिए, यह क्या हो रहा है?’
गुनाहगार थोड़े नम्र हुए। बोले, ‘यार! किससे-किससे पूछोगे। सुप्रीम कोर्ट पूछ तो रही है? है कोई जवाब देने वाला? प्रधानमंत्री से पूछो, तो अपनी ईमानदारी का तमगा और मजबूरी का रोना रो देंगे। विपक्षी सिर्फ हाय-हाय करना जानते हैं। उनको भी पता है कि देश में क्या हो रहा है। कुछ उन्होंने किया है, कुछ उनके भाई-बंधु कर रहे हैं और कुछ उनके भविष्य में करने की आशा है। इसी आशा पर उनकी सारी हाय-हाय टिकी है।’

मैंने कहा, ‘सरकार को कुछ मत कहिए। उसने किया तो है। ए राजा को जेल भेजा, सुरेश कलमाड़ी के किये-कराये पर पानी फेर दिया। बेचारे अब सफाई देते फिर रहे हैं कि मैंने कुछ नहीं किया।’

गुनाहगार फिर झल्ला उठे, ‘अरे, तो करते न! उन्हें कुछ करने के लिए ही तो जिम्मेदारी सौंपी गई थी। जब कुछ नहीं किया, तो इतना बड़ा घोटाला निकला और अगर कहीं खुदा न खास्ता करते, तो फिर पूरा देश ही कंगाल हो जाता। भगवान बचाए, ऐसे करने वालों से। अगर अपने देश में दो-चार ऐसा करने वाले निकल जाएं, तो फिर देश का बंटाढार ही समझो।’

‘भाई साहब, ऐसा करने वालों से हमारे देश की धरती कभी खाली नहीं रही है। आजादी के बाद से लेकर आज तक के इन घोटालेबाजों के नाम गिनाऊं क्या?’

‘रहने दो यार...अपने देश के तो भाग्य नियंता हो गए हैं घोटालेबाज। हम जन-गण-मन के अधिनायक तो यही हैं। इन्हीं का जयगान गाते-गाते इस दुनिया से विदा हो जाएंगे।’ उस्ताद गुनाहगार अब कुछ भावुक और भाग्यवादी से हो चले थे। उन्हें अधिक परेशान करने की बजाय घर की ओर लौट चला। चौराहे पर पहुंचा, तो वहां भीड़ देखकर मैं मामला जानने की नीयत से पास गया, तो पता चला कि एक रिक्शे पर कुछ लड़के गोमती नगर से पालिटेक्निक कालेज तक बड़े ठाठ से बैठकर आये और किराये के नाम पर पांच रुपये पकड़ाकर चल दिए। रिक्शेवाले ने विरोध किया, तो उसे मारा पीटा और उसके पास जो कुछ था, वह भी छीन कर भाग गए। लुटा-पिटा रिक्शावाला तमाशाई भीड़ से पूछ रहा था, ‘भइया, यह क्या हो रहा है? एकदम अंधेर मची है इस देश में। मेहनत भी कराया और जो कुछ था, वह भी लूटकर चलते बने।’ मैं गुनगुनाता हुआ घर लौट आया, ‘यह क्या हो रहा है...भाई...यह क्या हो रहा है?’

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