Monday, January 2, 2012

मनरेगा बनाती करोड़पति

-अशोक मिश्र

मैं सुबह अखबार पढ़ने में तल्लीन था। तभी सुपुत्र चिंटू ने सवाल दागा, ‘पापा! अच्छा यह बताइए, लोग करोड़पति कैसे बन जाते हैं। चुनाव जीतने से पहले तक कुछ हजार या लाख रुपये की औकात रखने वाला विधायक, सांसद, मंत्री ऐसे कौन-से मंत्र का जाप करता है कि वह देखते ही देखते करोड़पति हो जाता है। इन लोगों के घर में पैसे का कोई पेड़ उग आता है क्या?’

मैंने अखबार एक ओर रखते हुए कहा, ‘बेटा! मनरेगा इन लोगों को करोड़पति बनती है।मेरे जवाब से चिंटू संतुष्ट नहीं हुआ। बोला, ‘पर पापा...अपने पड़ोस में रहने वाले मुसद्दीलाल अंकल भी तो मनरेगा कार्ड होल्डर हैं, लेकिन वे करोड़पति नहीं बने?’ मैंने उदासीन संप्रदाय के धर्मोपदेशक की तरह कहा, ‘बेटा, यह बात मैं नहीं कहता, सरकार और सरकारी आंकड़ा कहता है। अब देखो न! आज ही अखबार में एक सरकारी विज्ञापन छपा है। इसके मुताबिक कोई सुनील कुमार हैं जो पहले बेरोजगार थे। मनरेगा के तहत कंप्यूटर आपरेटर बनते ही करोड़पति हो गए।

तो फिर मुसद्दीलाल अंकल क्यों नहीं करोड़पति बने?’ बेटा कारण जाने को पूरी तरह उत्सुक था, ‘और फिर अफसर-वफसर, सांसद-विधायक, मंत्री-संतरी कैसे करोड़ों में खेलने लगते हैं।

तुम्हारे मुसद्दीलाल अंकल ने मेहनत नहीं की होगी। बिना मेहनत किए इस दुनिया में कुछ भी हासिल नहीं होता। अभी तुम जिन लोगों की बात कर रहे थे, वे कितनी मेहनत करते हैं, मालूम है? पहले मनरेगा के तहत अपना नाम रजिस्टर पर दर्ज करवाते हैं। कार्ड होल्डर बनते हैं। फिर जमीन खोदते हैं। गर्मी हो, बरसात हो या कड़ाके की ठंड, हानि-ला की परवाह किए बिना ये अनवरत कार्य करते रहते हैं। इन्हें अगर जमीन खोदने का मौका मिले, तो यह नहीं देखते कि जमीन कहां की है? उत्तर प्रदेश की है या महाराष्ट्र की। बंगाल की है या केरल की। एकदम साधु भाव से जमीन खोदते रहते हैं। इन्हें कभी भाषा, प्रांत या जाति के नाम पर लड़ते देखा है? इनका एक मात्र ध्येय होता है कि किसी भी तरह करोड़पति बनना है। इनकी आंख अर्जुन की तरह भ्रष्टाचार की कड़ाही पर टंगी मछली पर टिकी होती है। ले ही उसके लिए कितनी भी मेहनत करनी पड़े। ये मेहनत करने से कभी पीछे नहीं हटते।मैं अपने कुलदीपक चिंटू को समझा रहा था।

लेकिन लोगों को लड़ाते तो हैं?’ चिंटू का अगला सवाल था।

मैंने बेटे को समझाया, ‘बेटा! ये अपनी कमाई बढ़ाने में इतने तल्लीन रहते हैं कि इन्हें फालतू बातें सोचने या करने का मौका ही नहीं मिलता है। अच्छा मान लो कि अपनी मेहनत और लगन से करोड़पति बनने वाले ये लोग किसी से कहें कि आपस में लड़ो, तो क्या इसमें उनका कोई कुसूर है? यह तो लोगों की नासमझी और बेवकूफी है कि वे किसी के कहने पर लड़ पड़ते हैं।मुझे लगा कि मेरी बात बेटे की समझ में आ रही है। मैंने अपनी बात अच्छी तरह से समझाने के इरादे से कहा, ‘जो लोग मंत्रियों, सांसदों, विधायकों, अधिकारियों, क्लर्कों और चपरासियों के करोड़पति-अरबपति बनने पर चिढ़ते हैं, कुढ़ते हैं या हो-हल्ला मचाते हैं, वे या तो नादान हैं या फिर काहिल और कामचोर। लूट-खसोट, ्रष्टाचार जैसी बातें वही करते हैं जो कुछ नहीं कर सकते। ऐसे लोग अपने परिवार पर ही नहीं, देश-प्रदेश पर बोझ होते हैं। अरे, जो आदमी एक छोटा-सा भ्रष्टाचार नहीं कर सकता, वह क्या खाक समाजसेवा करेगा। जो करोड़पति या अरबपति होगा, वही किसी को दस-बीस हजार या लाख की मदद करेगा। जिसके पास फटी गुदड़ी होगी, वह क्या खाक किसी को सुख दे पाएगा। इसलिए बेटा! खूब पढ़ो या नहीं, लेकिन मनरेगा कार्ड होल्डर होकर सुनील कुमार की तरह करोड़पति बन जाओ, मेरी और तुम्हारी मम्मी की यही इच्छा है।बेटे चिंटू ने मेरे पैर छूकर कहा, ‘पापा! आपका आशीर्वाद और मार्गदर्शन मिलता रहा, तो यह मनरेगा एक दिन जरूर मुझे करोड़पति बनाएगी।

(व्यंग्यकार साप्ताहिक हमवतनके स्थानीय संपादक हैं)

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