Tuesday, January 17, 2012

चार गो भतार ले के लड़े 'सतभतरी'

अशोक मिश्र

कल सुबह-सुबह मुसद्दीलाल गली में खुली पंसारी की दुकान के सामने मिल गए। ठंड में भी वे पसीने-पसीने हो रहे थे। उनकी हालत देखकर मुझे ताज्जुब हुआ। मैंने पूछा, 'अमां मियां! किसी मैराथन दौड़ से भाग लेकर आ रहे हैं क्या? इस उम्र में इतनी भागदौड़ अच्छी नहीं होती।'

मेरी बात सुनकर सांस को काबू में करते हुए मुसद्दीलाल बोले, 'चाय पत्ती खत्म हो गई थी। उसे लेने आया था। आओ, घर चलकर चाय पीते हैं।' मेरा हाथ पकड़कर उन्होंने घर की राह ली। घर में पहुंचकर बातचीत कब लोकगायक बालेश्वर के गीतों से जुड़ गई, पता ही नहीं चला। मुसद्दीलाल ने अचानक पूछ लिया, 'यार! बालेश्वर के एक गीत की लाइन है 'चार गो भतार ले के लड़े सतभतरी।' इसका क्या मतलब है। मैं कई दिनों से इस पर दिमाग खपा रहा हूं, लेकिन अर्थ है कि पकड़ में ही नहीं आ रहा है।'

मुसद्दीलाल के इस सवाल पर मैं ठिठक गया। बात ईरान की हो रही हो और कोई होनोलूलू के बारे में पूछ बैठे, तो किसी की भी बोलती बंद हो जाएगी। थोड़ी देर बाद मैंने समझाने का प्रयास किया, 'अगर इसका सीधा सादा राजनीतिक अर्थ निकाला जाए, तो यह है कि सात पतियों (यूपीए, एनडीए, वाम मोर्चा, तीसरा मोर्चा...जैसे गठबंधन) वाली सत्ता सुंदरी अपने चार पतियों को लेकर चुनाव मैदान में है। अब आपको तो यह मालूम ही है कि हमारे देश की सत्ता सुंदरी पिछले कुछ दशकों से एक भतारी (एक पार्टी की सरकार वाली) नहीं रह गई है। हर चुनाव के बाद कुछ पार्टियां गठबंधन बनाकर सत्ता सुंदरी के स्वामी बन जाते हैं। बाकी दल उसके प्रेमी की तरह सत्तारूढ़ दलों पर विभिन्न आरोप लगाकर संतोष कर लेते हैं।'

मुसद्दीलाल ने आश्चर्यचकित होते हुए कहा, 'क्या इसका यह मतलब है? मैं तो इसे गाली समझ बैठा था।'

'देखो मियां! अगर तुम 'भतार' शब्द से बिदक रहे हो, तो यह शब्द संस्कृत के 'भर्तार' यानी भरण-पोषण करने वाला (पति, स्वामी) से आया है। यह शब्द अपने आप में बुरा नहीं है, लेकिन इसका उपयोग अगर गाली देने में किया जाए, तो बुरा जरूर है। इसमें शब्द का कोई दोष नहीं है। अब अगर किसी महिला से यह कहा जाए कि उसके एक पति है, तो यह महिला के लिए गौरव की बात होगी। लेकिन उसे अगर सतभतरी (सात पतियों वाली) कहा जाए, तो यह निश्चित रूप से गाली है। आज देश के जो हालात हैं, उसमें राजनीति खुद एक गाली है। जिस देश में लोकतंत्र की आड़ में गुंडे, बदमाश, भ्रष्टाचारी, बलात्कारी और देश से विश्वासघात करने वाले चुनाव लड़कर सत्ता का सुख भोगते हों, वहां की जनता के लिए यह विडंबना किसी गाली से कम है क्या? अब देखिए न! पांच राज्यों में चुनाव होने वाले हैं, सभी सत्ता सुंदरी के स्वयंवर में जीतने की प्रत्याशा से मरे जा रहे हैं। वे हत्यारों, बलात्कारियों और भ्रष्टाचारियों को अपने साथ करने और उन्हें अपनी पार्टी का टिकट देकर जितवाने की हर संभ व कोशिश कर रहे हैं। एक भ्रष्ट और लुटेरी पार्टी का बदनाम मंत्री निकाले जाने पर दूसरी पार्टी में जाते ही दूध का धुला हो जाता है। ऐसे दौर में किसी सभ्य और ईमानदार व्यक्ति को नेता कह दीजिए, वह उसी तरह गुस्सा हो जाता है, जैसे उसे कोई भद्दी गाली दी गई हो।' मेरी इस बात से मुसद्दीलाल संतुष्ट हो गए और मैं चाय पीकर अपने घर चला आया।

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