Tuesday, February 21, 2012

भ्रष्टाचार के ‘ब्लैक होल्स’

अशोक मिश्र
‘बड़े बाबू! अब क्या होगा? सुना है, सरकार ने भ्रष्टाचार को खत्म करने का पक्का निश्चय कर लिया है।’ नगर निगम दफ्तर में जूनियर क्लर्क बच्ची बाबू ने अपने सीनियर छैलबिहारी के सामने अपनी व्यथा प्रकट की। बड़े बाबू छैल बिहारी थोड़ी देर तक सामने पड़ी फाइलों को घूरते रहे। फिर बोले, ‘बच्ची बाबू! आप भी एकदम बच्चे बन जाते हैं कभी-कभी। भ्रष्टाचार सनातनी व्यवस्था है। यह सतयुग, त्रेतायुग और द्वापर में फलता-फूलता रहा है। तुम ‘हनुमान चालीसा’ तो रोज गाकर पढ़ते हो। तुमने शायद ध्यान नहीं दिया, हनुमान चालीसा में तो साफ लिखा है, ‘होत न आज्ञा बिन पैसारे।’ यह शब्द ‘पैसारे’ वास्तव में ‘पैसा रे’ है। कबीरदास का रहस्यवाद तुमने पढ़ा है? तुम अर्थशास्त्र के विद्यार्थी रहे हो, इसीलिए तुम ‘पैसा...पैसा’ करते रहते हो। मैं तो साहित्य का विद्यार्थी रहा हूं। कबीरदास का रहस्यवाद मैंने खूब समझा है। रहस्यवादी कबीरदास ने अपने एक दोहे में कहा है, ‘साहब ते सब होत हैं, बंदे ते कछु नाहि। राई ते पर्वत करे, पर्वत राई माहि।’ इसका मतलब समझते हो? कबीरदास जी कहते हैं कि यदि साहब को पर्याप्त उत्कोच (रिश्वत) मिल जाए, तो वे असंभव काम को भी चुटकी बजाते ही संभव बना देते हैं। बच्ची बाबू! जब यह उत्कोच की सनातनी व्यवस्था तीनों युग में नहीं बदली, तो वह कलियुग में कैसे बदल जाएगी? और फिर तुम ही सोचो। भ्रष्टाचार बिना यह दुनिया कितनी फीकी-फीकी और बेरंग हो जाएगी। अगर सूखी तनख्वाह पर ही काम चलाना होता, तो हम अपने बेटे-बेटियों को इतनी भारी-भरकम फीस देकर महंगे स्कूल-कालेजों में क्यों पढ़ाते? हम सभी यही सोचकर बेटे-बेटियों की पढ़ाई में इन्वेस्ट करते हैं कि एक दिन हमारे बेटे-बेटियां इन्वेस्ट की गई रकम का पचास-साठ गुना कमाकर हमारा घर भरेंगे। अगर ऊपरी कमाई का जरिया ही खत्म हो गया, तो हम अपने बाल-बच्चों को कान्वेंट स्कूलों में कैसे पढ़ा पाएंगे? फिर इस दुनिया में जीने का चार्म ही खत्म हो जाएगा। हम सौ बरस तक जीने की कामना ही क्यों करेंगे।’ छैल बिहारी की बात सुनकर बच्ची बाबू को थोड़ी राहत मिली। वे बोले, ‘वही तो...मैं कहूं कि यह चमत्कार सरकार कैसे कर सकती है। कल प्रधानमंत्री अपने भाषण में कह रहे थे कि भ्रष्टाचार के खात्मे के लिए सरकार सख्त से सख्त कानून लाएगी। सच बताऊं बड़े बाबू। मैं तो डर ही गया था। आज एक प्रॉपर्टी की डीलिंग में बाइस लाख मिलने हैं। आप सब को हिस्सा देने के बाद मेरी झोली में साढ़े तीन लाख आएंगे। मैंने तो सोच भी लिया है कि इसका क्या करूंगा? बहुत दिनों से बीवी स्वीटजरलैंड जाने की जिद कर रही थी। सोचता हूं, इस बार लगा ही आऊं टूर।’
छैल बिहारी ने फुसफुसाते हुए कहा, ‘बच्ची बाबू! आप भी ‘ब्लैक होल’ के दर्शन करने जाना चाहते हैं। हो आइए, बड़ी अच्छी जगह है। हमारे देश के नेता, मंत्री, विधायक अपनी ब्लैक मनी को उसी ब्लैक होल में डालकर चैन की वंशी बजा रहे हैं। मैं भी दो बार जा चुका हूं।’ बच्ची बाबू ने चौंकते हुए कहा, ‘क्या मतलब? मैं कुछ समझ नहीं पाया।’ बड़े बाबू ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘बच्ची बाबू! स्वीटजरलैंड के बैंक हम भ्रष्टाचारियों के लिए पृथ्वी पर बने छोटे-मोटे ‘ब्लैक होल’ के समान हैं। ब्लैक होल जानते हो न! अंतरिक्ष में पृथ्वी से करोड़ों गुना बड़े-बड़े होल्स को ब्लैक होल कहते हैं, जिसमें अगर हमारे सूरज से भी कोई बड़ा तारा समा जाए, तो उसका पता नहीं चलेगा। स्वीटजरलैंड के बैंकों में चाहे जितना पैसा ले जाओ, सब कुछ ब्लैक होल की तरह हजम। सरकार चाहे जितना सिर पटक ले, जो कुछ स्वीटजर बैंकों में समा गया, उसका बाहर निकलना असंभव है।’
बडेÞ बाबू की बात सुनकर बच्ची बाबू झेंप गए। बोले, ‘अरे नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है। मैं तो बस ऐसे ही घूमने जाने की सोच रहा हूं। मेरे पड़ोस में रहने वाले धनीराम पिछले दिनों स्वीटजर लैंड हो आए हैं। वहां की रंगीनियों का जो खाका उन्होंने खींचा है, उससे मेरा मन भी थोड़ा रंगीन हो चला है। उसी रंगीनी का स्वाद चखने जाना चाहता हूं।’ इसके बाद दोनों काफी देर तक हंसते रहे।

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