Wednesday, April 18, 2012

..तो बेटा समझो गए काम से

-अशोक मिश्र

रविवार की सुबह अखबार पढ़ते हुए चाय पी रहा था कि दरवाजे पर उस्ताद मुजरिम की आवाज सुनाई दी। मैं उसी तरह सतर्क हो गया, जैसे किसी बिलौटे को देखकर चूहे सतर्क हो जाते हैं। कप टेबल पर रखते हुए उनके स्वागत के लिए मैं दरवाजे की ओर लपका। तब तक मुजरिम घरैतिन और बच्चों को आशीर्वाद का टोकरा थमाकर कमरे में घुस चुके थे। मैंने उन्हें प्रणाम किया। उन्होंने सामने रखे सोफे पर पसरते हुए कहा, ‘और सुनाओ बरखुरदार! क्या चल रहा है?’

‘आपका आशीर्वाद है’ कहकर मैंने घरैतिन को चाय-पानी लाने को कहा। इसके बाद मैंने अपना कप उठाया और चाय पीने लगा। तभी मुजरिम की नजर मेरे कप पर पड़ी। उसे देखते ही वे चीखे, ‘अरे! तुम ऐसे कप में चाय पीते हो। तब तो समझो बेटा, तुम गए काम से। अभी पिछले हफ्ते होनोलूलू यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि ऐसे कपों में चाय या पानी पीने से ‘डेंटाफर्टा मेथोडिस’ हो जाता है।’

उस्ताद की बात सुनकर मैं डर गया। पूछा, ‘डेंटाफर्टा मेथोडिस क्या बला है, उस्ताद?’ उस्ताद मुजरिम गंभीर हो गए, ‘यह एक वायरस है। यह वायरस खास तौर पर ऐसे ही बर्तनों में पलता है। इस वायरस के संपर्क में आने के बाद आदमी के दांत झड़ जाते हैं, आंखें सिकुड़ जाती हैं। वह कहता है ‘फ’ और मुंह से निकलता है ‘द’। पैर थोड़े छोटे हो जाते हैं। कहने का लब्बोलुबाब यह है कि आदमी अपनी स्वाभाविक उम्र से पहले ही अल्लाह को प्यारा हो जाता है।’ मैंने तत्काल चाय सहित कप उठाकर बाहर फेंक दिया। घरैतिन को आवाज लगाई, ‘अरी बेगम! पानी दो। हाथ धोना है।’ मेरी आवाज सुनकर घरैतिन एक जग पानी लेकर कमरे में नमूदार हुईं। मैंने उनसे हाथ धुलाने को कहा। घरैतिन हाथ पर पानी डालतीं, उससे पहले मुजरिम बोल पड़े, ‘अरी बहू, रुको। यह क्या कर रही हो। मुझे तो पानी प्रदूषित लग रहा है। पानी की जांच करा ली है कि नहीं? कहीं इसमें ‘फ्लोरोसिस आॅफ कंचाखेल’ बैक्टीरिया तो नहीं हैं। जानते हो, येल यूनिवर्सिटी के कुछ प्रोफेसर्स ने अभी दो महीने पहले भारत की नदियों और तालाबों के पानी की जांच की थी। देश की ज्यादातर नदियों और तालाबों में ‘फ्लोरोसिस आॅफ कंचाखेल’ के बैक्टीरिया खतरनाक स्तर तक पाए गए हैं। इस बैक्टीरिया के चलते इंसान के मस्तिष्क में अजीब-अजीब तरह के विचार पैदा होने लगते हैं। प्रोफेसरों ने सात सौ भारतीयों पर इस बैक्टीरिया के प्रभाव का परीक्षण किया था। जिसको ‘फ्लोरोसिस आॅफ कंचाखेल’ बैक्टीरिया युक्त पानी पीने को दिया गया, उसमें से ज्यादातर लोगों ने या तो अपनी बीवी या पति से झगड़ा किया। दो तिहाई लोगों ने तो उत्तेजना में अपने साथी को ‘कंटाप’ भी मारा।

घरैतिन बोलीं, ‘दादा! हम दोनों अकसर पगहा तुड़ाए बैल की तरह भिड़ते रहते हैं। कहीं उस बैक्टीरिया के कारण तो नहीं?’ मैंने तपाक से कहा, ‘क्या बकवास करती हो? बैक्टीरिया को हमारे लड़ाई-झगड़े से क्या लेना-देना है? अब कल को तुम कहोगी कि ज्यादा सांस लेने से दिल कमजोर हो जाता है, ज्यादा दौड़ने से किडनी पतली हो जाती है।’ ‘लेना-देना क्यों नहीं है, जी। आप मानें या न मानें, लेकिन मुझे लगता है कि दादा ठीक कह रहे हैं। जब से यहां का पानी पीना शुरू किया है, तब से इनका दिमाग खराब रहने लगा है। इससे पहले तो ये ऐसे न थे।’ घरैतिन ने घूंघट को संभालते हुए कहा।

घरैतिन की बात सुनते ही मैं उखड़ गया, ‘क्या बकती हो? मेरा दिमाग खराब हो गया है? तुम तुरंत मेरी नजरों से दूर जाओ, वरना पागलपन में कहीं तुम्हारा सिर न फोड़ दूं।’ मेरी बात सुनते ही घरैतिन तो वहां से रफूचक्कर हो गईं। बच गए उस्ताद मुजरिम। मैंने नाराजगी भरे स्वर में कहा, ‘क्या उस्ताद आप भी न! हमेशा बेसिर-पैर की बातें करते रहते हैं। लगता है कि आप भी सठिया गए हैं। बुढ़ापे में फालतू बातें कुछ ज्यादा ही सूझती हैं। आप फालतू के समाचार पढ़ने बंद कीजिए।’ इतना कहकर मैं उठा और घरैतिन द्वारा लाया गया पानी गटागट पीने लगा। उस्ताद मुजरिम भौंचक-से बैठे मुझे देखते रहे और फिर उठकर घरैतिन के पास जाकर उसे उपदेश देने लगे। मैंने घरैतिन को चाय को कहा और अखबार बढ़ने में तल्लीन हो गया।

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