Tuesday, May 1, 2012

आओ ‘सीडी-सीडी’ खेलें

अशोक मिश्र
कुछ बच्चे मोहल्ले के पार्क में तीन-चार मीटर लंबी और एक मीटर चौड़ी साफ-सुथरी जगह पर दस-बारह चौकोर खाने खींचकर खेल रहे थे। बच्चों को खेलता और धूप से हलकान होकर थोड़ी देर सुस्ताने की नीयत से पास ही उगे पेड़ की छाया में बनी सीमेंटेड बेंच पर बैठकर उनका खेल देखने लगा। सबसे बड़ा बच्चा सात साल का था और सबसे छोटी बच्ची चार साल की। एक बच्चे के हाथ में एक ‘सीडी’ थी। उनसे से एक बच्चा पहले चौकोर खाने के पास खड़ा होकर बोला, ‘अब मेरी बारी।’
बड़े बच्चे ने उसे सीडी थमाई। चौकोर खाने की ओर पीठ करके वह बच्चा खड़ा हो गया और उसने सीडी को चूमकर पीछे की ओर उछाली, ‘पापा की सीडी।’ उस बच्चे की बात सुनकर मैं उछल पड़ा। मानो, किसी ने बिजली का नंगा तार मेरी पीठ पर छुआ दिया हो। मेरी जगह कोई भी होता, तो चौंक गया होता, बशर्ते उसने सीडियों का ‘कमाल’ देखा होता। इन मुई सीडियों ने बड़े-बड़े महारथियों को पैदल कर दिया है। मैं दिल्ली के एक नेता जी को जानता हूं। बेचारे पार्टी के लिए उन्होंने पूरी जिंदगी खपा दी। उनका बाप पार्टी में बड़ा नेता था, तो उत्तराधिकार में उन्हें चल-अचल संपत्ति के साथ ही नेतागीरी भी मिली। पार्टी ने उनके बाप की सेवाओं को ध्यान में रखते हुए उन्हें सिर-आंखों पर बिठाया। वे पार्टी की ओर से मीडिया में नैतिकता और सच्चरित्रता का प्रवचन देने लगे। वे विरोधियों की राई भर की गलती को पहाड़ बनाकर वाहवाही लूटते। उनकी वाक्पटुता के पार्टी वाले ही नहीं, विरोधी भी कायल थे, लेकिन एक दिन पता नहीं, किस नामाकूल ने मीडिया को एक सीडी जारी कर दी। सीडी क्या जारी हुई, कल तक सिर-माथे पर बिठाया जाने वाला यह नेता अछूत हो गया। पार्टी के विभिन्न पदों से इस्तीफा देकर राजनीतिक वनवास भोगने को मजूबर होना पड़ा।
इस करमजली सीडी ने नेताओं की ही भट्ठी नहीं बुझाई है, आम लोगों के भी जीवन में जहर घोला है। मेरे पड़ोस में रहते है परसद्दी लाल। कोई बड़े आदमी नहीं हैं। एक दम खांटी आम जनता हैं। बेचारे सीधे इतने कि मोहल्ले के लोग उन्हें गऊ बोलते हैं। महीने भर पहले वे किसी काम से अपने आठ वर्षीय बेटे गॉटर प्रसाद के साथ अपनी ससुराल गए। उन दिनों परसद्दी लाल की साली भी अपने मायके आई हुई थी। दो दिन ससुराल में रहकर परसद्दी लाल लौट आए थे। एक दिन उनके बेटे गॉटर ने बहुत खुश होकर बताया, ‘अम्मा! बप्पा ने मौसी के साथ एक सीडी बनाई है। बप्पा उस सीडी को अपने झोले में लेकर आए हैं।’
दरअसल, परसद्दी लाल की ससुराल में भागवत कथा का आयोजन किया गया था, जिसमें भाग लेने वह गए थे। इस पूरे आयोजन की वीडियो रिकॉर्डिंग की गई थी, जिसमें वह अपनी साली के साथ बैठे प्रवचन सुन रहे थे। परसद्दीलाल के मजदूरी करके घर लौटने पर उनकी बीवी ने पहले तो बातों-बातों में मायके में बनी सीडी की चर्चा की। साली को लेकर मजाक की नीयत से पहले तो वह खूब इठला-इठलाकर पत्नी को चिढ़ाते रहे। फिर यह मजाक धीरे-धीरे रंग लाता गया और फिर मियां-बीवी में तकरार शुरू हो गई। बात मारपीट तक पहुंची और गुस्से में आकर मोहल्ले में गऊ कहे जाने वाले परसद्दी लाल ने बीवी को बाहर निकालकर अंदर से घर का दरवाजा बंद कर लिया। गुस्सा शांत होने पर उन्होंने बीवी को अंदर बुलाना चाहा, तब तक उनकी बीवी बेटे को लेकर मायके जा चुकी थी। हालांकि, मायके पहुंचने पर परसद्दी लाल की बीवी को सीडी की असलियत मालूम हुई, लेकिन तब तक मामला हाथ से निकल चुका था। अब वह हेठी के भय से नहीं ससुराल जा रही है और न ही परसद्दी लाल उसे लिवाने जा पा रहे हैं।
मैंने बच्चों को बुलाकर कहा, ‘बच्चों! तुम्हें यह खेल किसने सिखाया है? यह गंदा खेल है, इसे मत खेलो।’ उन बच्चों में से एक ने कहा, ‘अंकल! कल टीवी पर लिखा था ‘सीडी का खेल।’ अब यह खेल तो समझ में आया नहीं कि कैसे खेलते हैं, सो हम लोग आज ‘सिकड़ी’ खेल को ही बदल कर ‘सीडी-सीडी’ खेलने लगे। आप ये जो बारह खाने देख रहे हैं, इनमें से हर खाने का एक नाम है, जैसे मम्मी, पापा, भइया, दीदी, मौसी आदि। जिस खाने में यह सीडी गिरती है, तो हम कहते हैं कि मम्मी की सीडी, पापा की सीडी। हर खाने का एक स्कोर है। इसके साथ ही खेलने वाले को एक टांग पर बिना कोई खाना छलांग लगाए या इन लकीरों पर पैर रखे, उस सीडी को उठाना होता है और फिर एक टांग पर ही उसे लौटना भी होता है। इस तरह जो ज्यादा स्कोर हासिल करता है, वह जीतता है।’ तभी एक लड़का चिल्लाया, ‘अबे सुरेश! चल तू अपनी चाल चल। अंकल तो पागल हो गए हैं। खेल भी कहीं गंदा होता है।’ मैं चुपचाप बैठा रहा और बच्चे खेलते रहे।

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