Thursday, May 31, 2012

गधों की रेव पार्टी

-अशोक मिश्र
जियामऊ गांव में एक गधा चरने के साथ-साथ ‘ढेंचू-ढेंचू’ करके गर्दभ राग में गाता जा रहा था, ‘तू कहे तो मैं बता दूं, मेरे दिल में आज क्या है?’ वह काफी देर से चर रहा था, इसलिए उसका पेट लगभग भर गया था। पेट भर जाने की वजह से उसे भी इंसानों की तरह मस्ती सूझने लगी थी। यही वजह से वह पहले एक गफ्फा घास का मुंह में भरता और पेट में घास ढकेलने के बाद गाने लगता। तभी कालिदास मार्ग की तरफ से दूसरा गधा लंगड़ाता हुआ आया और पहले वाले गधे के पास ही जल्दी-जल्दी चरने लगा। उसके चरने की स्टाइल बता रही थी कि उसने हरी घास काफी दिनों बाद देखी है।
पहले से चर रहा गधा उसके पास गया और बोला, ‘काफी दिनों बाद हरी घास चरने का मौका मिला है क्या?’ कालिदास मार्ग की तरफ से आए गधे ने एक हल्की-सी दुलत्ती झाड़ते हुए अभिवादन किया और बोला, ‘ऐसी बात नहीं है, लेकिन यह घास कुछ ज्यादा मुलायम है, इसलिए अच्छी लग रही है।’ पहले वाले ने पूछा, ‘तुम लंगड़ा क्यों रहे हो? तुम्हारे मालिक ने पीटा है क्या?’ दूसरे ने जवाब दिया, ‘नहीं, रेव पार्टी में गया था? वहीं चोट लग गई।’
‘यह रेव पार्टी क्या होती है?’ पहले वाले गधे चरना बंद कर दिया था। ‘रेव पार्टी...इसका आनंद तो शब्दों से बता पाना काफी मुश्किल है।’ दूसरा गधा पिछली रात में हुई रेव पार्टी के आनंद में खो गया। उसने कहा, ‘रेव पार्टी में सभी जवान गधे-गधी इकट्ठे होकर नाचते-गाते हैं, खाते-पीते हैं। खूब मौज-मस्ती करते हैं और अपने-अपने बाड़े में जाकर सो जाते हैं।’
‘लेकिन तुम्हें चोट कैसे लग गई?’ पहले वाले ने पूछा। दूसरे ने एक बार तो पहले वाले गधे को घूरा और फिर बोला, ‘सुरैया के बाड़े में कल रात हम लोग इकट्ठे हुए थे। सुरैया का बाड़ा काफी बड़ा है। उसके मालिक ने एक जमीन को चारों ओर से लकड़ी और बांस से घेर कर बाड़े का रूप दे दिया है। उस रेव पार्टी में मैं था, रामधनी की गधी सुरैया थी, बाचू का गधा पतिंगा था। अब तुम यह बात इस तरह समझो कि मैं यानी धनधूसर, सुरैया, पतिंगा, रमरतिया, गॉटर, रेखा, श्यामा, हलकट जैसे लगभग बीस-पच्चीस गधे-गधी इस रेव पार्टी में थे। कोई अपने घर से हरी घास लाया था, तो कोई चूनी, कोई भूसी। रमरतिया अपने मालिक के घर से कच्ची दारू की बोतल ही मुंह में दबाकर ले आई थी। पहले तो रामधनी के घर में बज रहे फिल्मी गीतों पर हम सब डांस करते रहे। रात बारह बजे के बाद हम लोगों ने घरों से कुछ चोरी, कुछ मांग कर लाई गई घास, भूसी-चूनी को भर पेट खाया। खाने के बाद हमने रमरतिया द्वारा लाई गई शराब का सेवन किया। कसम गर्दभ राग की, क्या मस्त वाइन थी! मजा आ गया।’
इतना कहकर धनधूसर पार्टी की रंगीनियों में खो-सा गया। काफी देर तक जब वह नहीं बोला, तो पहले वाले ने पूछा, ‘धनधूसर भाई! फिर क्या हुआ? बताओ न, काफी अच्छा लग रहा है तुम्हारी बात। अब तो मुझे भी किसी रेव पार्टी में शामिल होने की इच्छा हो रही है। सुना है कि इंसान भी रेव पार्टी आयोजित करते हैं।’
धनधूसर ने बताना शुरू किया, ‘वाइन चढ़ते ही हम गधों पर मस्ती छा गई। हमने रमरतिया से थोड़ी दारू और लाने को कहा। वह चुपके से अपने मालिक की दूसरी बोतल उठा लाई। दूसरी बोतल की दारू पीने के बाद हमने फिर नाचना शूरू किया। इसी बीच पतिंगा ने गॉटर की प्रेमिका सुरैया को छेड़ दिया। बस फिर क्या था। ‘बातन-बातन बत बढ़ होइ गई औ बातन में बढ़ गई रार’ वाली स्टाइल में पतिंगा और गॉटर एक दूसरे से भिड़ गए। दोनों एक दूसरे पर दुलत्तियां झाड़ने लगे। पहले तो हम सबने एक दूसरे को छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन बाद में हम सभी किसी न किसी की तरफ से लड़ने लगे। हम सभी लड़ ही रहे थे कि छापा पड़ गया।’
‘छापा पड़ गया? मतलब?’ पहले वाले ने उत्सुकता से पूछा। धनधूसर ने कहा, ‘छापा पड़ गया मतलब...छापा पड़ गया। हम लोगों के दुलत्तियां झाड़ने और लड़ने-भिड़ने के चलते बाड़े के टूटने से पैदा हुई आवाज सुनकर सुरैया का मालिक रामधनी एक मोटा डंडा लेकर निकला और लगा हम लोगों पर बरसाने। सारे लोग तो भागने में सफल हो गए। सबसे पहले मैं मिला, सो सबसे ज्यादा उसकी कृपा मुझ पर ही बरसी। इसके बाद कृपा पाने वालों में सुरैया का नंबर दूसरा था। वह बेचारी भाग कर कहां जाती! उसे तो वहीं रहना था।’ इतना कहकर धनधूसर चरने लगा।

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