Friday, June 15, 2012

अक्ल और बादाम का रिश्ता

-अशोक मिश्र
किसी स्वास्थ्य विशेषज्ञ ने कहा है कि तंदुरुस्ती हजार नियामत है। इसी नियामत को बरकरार रखने के लिए प्रत्येक रविवार को हम बाप-बेटे अपने मोहल्ले के पार्क में सुबह उठकर दौड़ लगाते हैं। कई बार तो ऐसा भी होता है कि जब मैं आलस्य के चलते दौड़ने जाने में आनाकानी करता हूं, तो मेरा आठ वर्षीय बेटा ‘का चुप साधि रहा बलवाना’ की तर्ज पर मुझे मेरा बल याद दिलाता है। बेटे के उत्साह को देखते हुए मैं भी उठकर उसके साथ हो लेता हूं। अब आपको आज का ही वाकया सुनाऊं। सुबह मैं अपने बेटे के साथ पार्क की साफ-सुथरी जगह छोड़कर गड्ढों वाली जगह पर दौड़ लगा रहा था। मैं आगे था और मेरा बेटा पीछे। तभी गड्ढे में पैर पड़ने से मेरा बेटा लड़खड़ाया और मुंह के बल गिर पड़ा। उसकी कोहनी और घुटने छिल गए थे। वह रुआंसा हो उठा। तभी पीछे से मेरी पड़ोसन छबीली दौड़ती हुई आई और बेटे को उठाती हुई बोली, ‘बेटे! बादाम-शादाम खाया करो, इससे अक्ल बढ़ती है।’
छबीली की बात सुनकर मैंने पीछे देखा और दौड़कर अपने बेटे के पास आ गया। बेटे के कपड़ों में लगी धूल को झाड़ते हुए कहा, ‘बादाम खाने से नहीं, ठोकर खाने से अक्ल बढ़ती है।’ मेरी बात सुनकर छबीली ने दोनों हाथ कमर पर रखकर अ्रखाड़ में उतरने वाले पहलवान की तरह कहा, ‘अगर ठोकर खाने से अक्ल बढ़ती, तो यूपीए सरकार को बहुत पहले अक्ल आ गई होती। बाबा रामदेव और अन्ना हजारे एक ही मंच पर लोकपाल बिल और कालेधन को लेकर अनशन पर न बैठते।’
मैंने छबीली को घूरते हुए कहा, ‘क्या मतलब? अन्ना और बाबा रामदेव का मामले को बादाम से क्या लेना देना है।’ छबीली मेरी बात सुनकर पहले तो मुस्कुराई और फिर बोली, ‘इन दोनों की एकता का बादाम से नहीं, लेकिन अक्ल से तो लेना-देना है। दरअसल, मेरी समझ में बाबा और अन्ना की दोस्ती रहीमदास के दोहे ‘कहि रहीम कैसे निभे, केर-बेर के संग, वे डोलत रस आपने उनके फाटत अंग’ को पूरी तरह से चरितार्थ कर रही है। अभी कुछ ही दिन पहले का उदाहरण लें। बाबा और अन्ना ने दिल्ली में एक साथ अनशन किया। बाबा रामदेव ने कहा कि किसी की व्यक्तिगत आलोचना नहीं की जाएगी। लेकिन अन्ना हजारे के चेले-चपाटों ने सारा गुड़ गोबर कर दिया। वे लगे एक-एक मंत्रियों का नाम गिनाने। फलां मंत्री ने इतने का घोटाला किया, अमुक ने इतने की कमाई की। जबकि सच बताऊं। बाबा रामदेव सुबह उठकर सबसे पहले सात-आठ बादाम की गिरी खाते हैं, एक लोटा पानी पीते हैं। उनका दिमाग कितना तेज चलता है। उन्हें मालूम है कि सियासत और व्यापार को एक साथ कैसे साधा जाता है। यह बादाम खाने का ही नतीजा है कि उन्होंने अपनी एक टांग सियासत की चौखट में फंसा रखा है, तो दूसरी टांग के सहारे खड़े होकर योग का व्यापार कर रहे हैं, स्वदेशी के नाम पर कई तरह के उत्पाद बाजार में धड़ल्ले से बेच रहे हैं।’
इतना कहकर छबीली सांस लेने के लिए रुकी। फिर उसने मेरे बेटे के सिर को सहलाते हुए कहना शुरू किया, ‘बादाम सेवन के चलते ही रामलीला ग्राउंड पर पिछले साल हुए ‘सलवार-सूट’ कांड के बाद बाबा रामदेव सतर्क हो चुके थे। उन्हें एहसास हो चुका था कि यदि सरकार अपनी पर उतर आए, तो वह किसी की भी भट्ठी बुझा सकती है। यदि वजह थी कि इस बार उन्होंने किसी भी मंत्री के खिलाफ एक भी शब्द नहीं कहा। उन्होंने तो यहां तक कहा कि पूज्य मैडम के पास जाऊंगा कालेधन के खिलाफ अलख जगाने। फलां आदरणीय नेताजी के पास जाऊंगा उनकी मदद मांगने। उधर अन्ना हजारे की टीम को ले लीजिए। मुंबई अनशन फ्लाप होने यानी समर्थकों के ठुकराने के बाद भी नहीं संभले। उनके चेले-चपाटे हर महीने को अगस्त जैसा मानकर दंभ में फूले जा रहे हैं। कभी सांसदों को चोर-लुटेरा, डाकू और बलात्कारी बता रहे हैं, तो कभी उन्हें भ्रष्टाचारी। इस आपसी सिर फुटौव्वल का नतीजा क्या हुआ? लोगों के सामने आ गया कि इन दोनों की दोस्ती ‘केर-बेर’ की दोस्ती जैसी है।’ इतना कहकर छबीली ने मेरे बेटे को ‘बॉय-बॉय’ किया। मुझे ठेंगा दिखाया और पार्क में टहल रहे लोगों पर मुस्कान की बिजलियां गिराती आगे बढ़ गई।

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