Tuesday, January 15, 2013

काव्य का नया सौंदर्यशास्त्र


-अशोक मिश्र

उस्ताद मुजरिम घर पर पधारे, तब मैं कविता का नया सौंदर्यशास्त्र लिख रहा था। उस्ताद मुजरिम ने चरणस्पर्श करने पर एक लंबा आशीर्वाद देने के बाद पूछा, ‘क्या लिख रहे हो, बरखुरदार!’ मैंने उत्साहित होकर बताया, ‘उस्ताद! काव्य का नया सौंदर्यशास्त्र रच रहा हूं। सदियों पुराना सौंदर्यशास्त्र पढ़-सुनकर लोग पक चुके हैं। वही नवोढ़ा नायिका, वही स्वकीया...परकीया का चक्कर। अरे भाई, कब तक हजारों साल पुराने प्रतिमान, बिंब-प्रतिबिंब को रोते रहोगे। अब जमाना बदल चुका है, फेसबुक और मोबाइल के जमाने में उत्कठिंता, अभिसारिका, मुग्धा, प्रगल्भा, ऊढ़ा, अनूढ़ा, रक्ता, विरक्ता नायिकाएं खोजते-फिरोगे, तो कौन पढ़ेगा या सुनेगा तुम्हारी कविताएं। यही वजह है कि आजकल कवि और प्रकाशक सिर पर हाथ रखकर जार-जार रो रहे हैं, माथा पीट रहे हैं, ‘कविताओं के अब पाठक नहीं रहे।’ अरे भाई! आज जब न्यूनतम वस्त्रों वाली नायिकाएं सौंदर्य के नए-नए प्रतिमान गढ़ रही हों, सौंदर्य का आधार ‘सब कुछ छिपाना नहीं, सब कुछ दिखाना’ रह गया हो, उस जमाने में नख से शिख तक सौलह गजी साड़ी में गुंठित-अवगुंठित नायिका को काव्य का आधार बनाओगे, तो किस रस की निष्पत्ति होगी? विरक्ति का भाव ही न उपजेगा मन में!’
मेरी बात सुनकर उस्ताद मुजरिम खिलखिलाकर काफी देर तक हंसते रहे। फिर गंभीर होकर उन्होंने नाक से ‘हूंऊ...’ की गहरी आवाज निकाली और बोले, ‘तो तुम नया नायिका भेद रच रहे हो?’ मैंने तपाक से उत्तर दिया, ‘हां उस्ताद! जिस दिन मैं अपने इस दुरूह कार्य को संपादित कर लूंगा, उस दिन कविता के क्षेत्र में क्रांति हो जाएगी। भरतमुनि, रुद्रभट्ट जैसे आचार्यों की तरह मैं भी आचार्य कहा जाऊंगा। आधुनिक काव्य में मेरी अमरता तो सुनिश्चित है। मेरा नायिका भेद स्कूल, कॉलेजों और महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाएगा। आप देखना एक दिन...।’ मेरी बात सुनकर उस्ताद एक बार फिर हंस पड़े। बोले, ‘कुछ मुझे भी सुनाओ तुमने क्या लिखा है।’ मैंने अपने चारों ओर बिखरे कागज-पत्रों को समेटने के बाद उन्हें बताया। मैंने चार तरह के नायिकाओं को ही मान्यता दी है। मेरी पहली नायिका है, फेसबुकिया। इसके भी दो उपभेद हैं, स्वकीया और परकीया। ‘स्वकीया फेसबुकिया’ नायिका वह है, जो अपने फ्रेंड सर्किल की होती है। यह नायक की गर्लफ्रेंड भी हो सकती है, वाइफ भी। इन पर नायक (यानि ब्वायफ्रेंड) का पूर्ण अधिकार होता है। वह जो कुछ भी ‘पोस्ट’ करता है, नायिका उसे ‘लाइक’ करने को मजबूर होती है। गर्लफ्रेंड की सहेली, उसकी भाभी, उसकी सिस्टर या फिर किसी फ्रेंड की गर्लफ्रेंड और उसके अन्य रिश्तेदारिनें ‘परकीया फेसबुकिया’ नायिका की कोटि में आती हैं। परकीया फेसबुकिया नायिका के दो उपभेद हैं, ‘शंका नायिका’, ‘आशंका नायिका’। ‘शंका नायिका’ वह है जिसे नायक की पत्नी, बच्चे, मां-बाप और भाई-बहनें प्रेमिका होने की शंका के चलते उसके फेसबुक एकाउंट को ‘स्पैम’ करने का दबाव डालते हैं। प्रेमिका होने का प्रमाण मिल जाने पर नायक के परिजन जिस नायिका के फेसबुक एकाउंट को नायक के फेसबुक एकाउंट से डिलीट करा देते हैं, वह आशंका नायिका कहलाती है।’
इतना कहकर मैंने उस्ताद मुजरिम की ओर देखा। वह बड़े गौर से मेरी बात को सुन रहे थे। उन्होंने मुझे अपनी बात जारी रखने का संकेत किया। मैंने आगे कहा, ‘उस्ताद! फेसबुकिया नायिका की चार कोटियां (किस्में) होती हैं। पोस्टा, शेयरा, कमेंटा और लाइका।’ ऐसी नायिकाएं, जो आए दिन कोई न कोई सामग्री पोस्ट करती रहती हैं, वे पोस्टा कहलाती हैं। ये स्वकीया और परकीया दोनों हो सकती हैं। कुछ स्वकीया और परकीया नायिकाएं अपनी प्रतिनायिकाओं (ब्वायफ्रेंड की अन्य सहेलियों/प्रेमिकाओं) को जलाने के लिए नायक की पोस्ट की गई सामग्री को शेयर कर लेती हैं, तो वे शेयरा नायिका में तब्दील हो जाती हैं। ठीक इसी तरह कमेंटा नायिकाएं होती हैं। शेयरा और कमेंटा नायिका में मामूली-सा फर्क होता है। ऐसी कोटि की नायिका नायक की पोस्ट पर कमेंट करके सारी दुनिया को यह जताने की कोशिश करती है कि फिलहाल उसके ही अपर चैंबर में दिमाग है, बाकी सबके खाली हैं। प्राचीनकाल के काव्य सौंदर्यशास्त्र में दूतिका, परिचारिका (नौकरानी) और नर्म सचिव (बचपन की सहेली) को काफी महत्व दिया गया है। हिंदी और संस्कृत साहित्य में ये नायक-नायिकाओं का दिल बहलाने का काम करते पाए जाते हैं। आधुनिक सौंदर्यशास्त्र में दूतिकाओं, परिचारिकाओं और नर्म सचिवों का काम करने वाली नायिकाओं को लाइका नायिका की श्रेणी में रखा जा सकता है। ये नायक या नायिका की पोस्ट को ‘लाइक’ करके उन्हें संदेश देते हैं, ‘लगे रहो मुन्नाभाई/लगी रहो मुन्नीबाई, हम तुम्हारे साथ हैं।’ इतना कहकर मैंने अपना कागज एकतरफ रखकर उस्ताद मुजरिम की ओर देखा। वे मुस्कुरा रहे थे। उन्होंने मेरे सिर पर आशीर्वाद भरा हाथ फेरते हुए कहा, ‘तुम धन्य हो, तुम्हारी प्रतिभा धन्य है।’ इतना कहकर वे अपने घर चले गए।

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