Tuesday, February 5, 2013

डीएनए में भ्रष्टाचार

-अशोक मिश्र
दिल्ली के सर्वसुखानंद स्टेडियम में ‘अखिल भारतीय लूटखसोट पार्टी’ का चिंतन शिविर चल रहा था। पार्टी अध्यक्ष पद पर युवा नेता ‘नादान बालक’ की ताजपोशी हो चुकी थी। पार्टी के वरिष्ठ और गरिष्ठ नेता अपने नव मनोनीत अध्यक्ष ‘नादान बालक’ के मुखारबिंद से कुछ सुनने को बेताब हो रहे थे। मौके की नजाकत भांपकर पूर्व अध्यक्ष ने ‘नादान बालक’ जी को शिविर को संबोधित करने का इशारा किया। ‘नादान बालक’ जी ने अपना चश्मा एक बार व्यवस्थित किया और बोले, ‘इस चिंतन शिविर में आने से पहले मैं बहुत चिंतित था। मेरी चिंता पार्टी के कार्यकर्ताओं, नेताओं को लेकर थी। मुझे बार-बार अपने नेताओं, कार्यकर्ताओं के दयनीय चेहरे याद आ रहे थे, लेकिन अब, जब चिंतन शिविर धीरे-धीरे अपने समापन की ओर बढ़ रहा है, मैं आश्वस्त हूं। मैं जानता हूं कि आप सबकी चिंता भविष्य को लेकर है। आप इस चिंता में दुबले हुए जा रहे हैं कि आगामी लोकसभा चुनाव के बाद पता नहीं ‘खाने-कमाने’ को मिलेगा या नहीं। एक बात मैं आपको बता दूं। यह बात इसी चिंतन शिविर रूपी मंथन से निकलकर सामने आया है। इस देश क्या, पूरी दुनिया में जब तक पूंजीपतियों को मुनाफा कमाने और निजी संपत्ति को बरकरार रखने की छूट रहेगी, हमारे ‘ख्राने-कमाने’ की व्यवस्था बनी रहेगी। जिस भ्रष्टाचार को लेकर आज लोग इतना हो-हल्ला मचा रहे हैं, वह भ्रष्टाचार तो हमारे डीएनए में है, देश की जनता के खून में है। जीवन से भ्रष्टाचार और मुनाफे पर आधारित बिकाऊ माल की अर्थव्यवस्था को खत्म कर देने का मतलब पूंजीवादी व्यवस्था का खात्मा...। आप किसी कांग्रेसी से पूछ कर देखें, भाजपाई से पूछें, संघियों को टटोलें, यहां तक कि मजदूरों, किसानों और शोषितों के नाम पर चांदी काटने वाले वामपंथियों से पूछें कि क्या वे मुनाफे पर आधारित इस व्यवस्था को मिटाना चाहते हैं? ये सभी पार्टियां एक स्वर में चिल्लाकर कहेंगी, नहीं...नहीं...नहीं..।’
इतना कहकर नादान बालक जी ने चारों ओर बैठे प्रतिनिधियों पर निगाह डाली, ‘भविष्य में खाने-कमाने की चिंता में मरे जा रहे आप लोग बुद्धू हैं। आपको बताऊं, जब भी मैं इस देश के गरीबों को देखता हूं, किसानों को देखता हूं, बेरोजगारों को देखता हूं, तो इनमें मुझे अपना और अपनी पार्टी का उज्जवल भविष्य दिखता है। मैं इन्हें एक शिकार के रूप में देखता हूं। जब भी मुझे सड़कों पर आते-जाते कोई बच्चा दिखता है, तो वह मुझे भावी शिकार नजर आता है। मेरी पार्टी के सभी नेताओं और कार्यकर्ताओं से बस यही अपील है कि आप सभी जितनी जल्दी हो सके, झुनझुना बजाने की कला सीख लें। देशवासियों के सामने जोर-जोर से झुनझुना बजाएं, उन्हें परियोजनाओं की लालीपॉप दें, आर्थिक उदारीकरण का झांसा देना, तो आपको सबसे पहले आना चाहिए। जो नेता-कार्यकर्ता आर्थिक उदारीकरण पर घंटे-दो घंटे भाषण नहीं दे सकता हो, उसे तत्काल बाहर कर दें। हमें ऐसा नेता-कार्यकर्ता नहीं चाहिए, जो लूट, खसोट, झपटमारी, ठगी और चोरी जैसी प्राचीन और महत्वपूर्ण कला में माहिर न हो। अगर जरूरत पड़ी, तो हम जिला स्तर पर इन कलाओं में प्रवीणता के लिए ट्रेनिंग कैंप लगाएंगे। हमें हर राज्य से कम से कम पचास-पचास ठग, जेबकतरे और चालबाज लोग चाहिए, जो अपने प्रदेश को अच्छी तरह से बेच सकें, सरकारी खजाने को चूना लगा सकें। आप सभी वरिष्ठ, गरिष्ठ, कच्चे, पक्के नेताओं और कार्यकर्ताओं को दो महीने का समय दिया जाता है, आप अपने भीतर इन कलाओं का विकास कर लें।’
नादान बालक की बात सुनकर शिविर में उपस्थित युवा प्रतिनिधियों ने करतल ध्वनि की, तो नव मनोनीत अध्यक्ष खुश हो उठे। उन्होंने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा, ‘आप लोग एक बात का ध्यान और रखें। आगामी चुनाव में लोकसभा या विधानसभा का टिकट अपनी ही पार्टी के कार्यकर्ता को दिया जाएगा। दूसरी पार्टियों से आने वाले ठगों, लुटेरों और बटमारों को प्राथमिकता नहीं दी जाएगी। आप लोग एक बात अच्छी तरह से जान लें कि जब तक देश में एक भी भूखा, गरीब, बेरोजगार, किसान, मजदूर रहेगा, तब तक खाने-कमाने की संभावनाएं बनी रहेंगी। जो लोग भ्रष्टाचार का विरोध और राजनीति में स्वच्छता के हिमायती हैं, उनकी बातों पर कान धरने की जरूरत नहीं है। आप अपना काम करें, वे अपना काम करें। आप अपने काम में प्रवीण हों, इसी आकांक्षा के साथ यह शिविर समाप्त होता है। आप लोग अपने-अपने इलाकों में जाकर प्राणपण से अपने लक्ष्य में जुट जाएं।’ इतना कहकर अध्यक्ष नादान बालक जी ने अपना संबोधन खत्म किया और शिविर से चले गए।

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