Tuesday, May 28, 2013

मरवा देगा श्रीसंतवा

-अशोक मिश्र 
आफिस में बैठा खबरों की कतरब्योंत कर रहा था कि मेरा मोबाइल किसी हलाल होते बकरे की तरह चिंचियाया। मैंने लपककर उसे उठाया। अपने कर्ण पटल तक लाकर बड़े प्यार से कहा, ‘हेलो..!’ उधर से गुर्राती हुई आवाज कानों में इस तरह घुसी मानो कानों के पर्दे को फाड़ देगी, ‘कहां हो इस समय...और कौन-कौन कलमुहियां हैं तुम्हारे साथ?’ मैंने आम भारतीय पतियों की तरह गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘कोई तो नहीं है मेरे साथ...और फिर गॉटर की मम्मी...आॅफिस में कौन हो सकता है? तुम्हें ऐसा क्यों लगा कि इस समय मेरे साथ कोई हो सकता है?’ मैंने मामले की पूंछ पकड़ने की फिराक में पत्नी से दरियाफ्त किया। उधर से एक बार फिर गुर्राती हुई आवाज आई, ‘सुनो जी...अगर मैंने आपके बारे में कुछ ऐसा-वैसा किसी से सुना, अखबार या चैनल पर कुछ दिखाई पड़ा या मुझे ही कोई सुबूत मिल गया, तो एक बात याद रखना...मुझसे बुरा कोई नहीं होगा आपके लिए?’
‘यार मामला क्या है? यह तो बताओ... खामुख्वाह मुझ जैसे शरीफ आदमी पर तुम झांसी की रानी की तरह चढ़ाई किए हुए हो। मैं तुम्हें पहले भी कई बार बता चुका हूं कि मैं रसिक मिजाज का हूं, अय्याश नहीं हूं। हां, ससुराल में सालियों, सलहजों, मोहल्ले में भाभियों से हंसी-ठिठोली कर लेता हूं। कुछ मेरी फ्रेंड हैं, उनसे तुम्हारे ही सामने कुछ हल्के-फुल्के मजाक कर लेता हूं, इसका मतलब यह नहीं है कि तुम मेरी इज्जत का फालूदा बनाकर चौराहे पर बेचती फिरो। यार मैंने तुमसे शादी की है, कोई गुलामी का पट्टा नहीं लिखवा लिया है।’ मैं भी भगोने में चढ़ी दाल की तरह उबल पड़ा। मेरा मन हुआ कि मोबाइल का स्विच आॅफ कर दूं, लेकिन फिर अपनी स्थिति का ख्याल आया। भारत में ही नहीं, पूरी दुनिया में किसी पति नामधारी जीव की यह हिम्मत नहीं हो सकती है कि वह अपनी पत्नी की कॉल बीच में काट दे। दुनिया के सबसे श्क्तिशाली राष्ट्र के राष्ट्रपति बराक ओबामा से लेकर लाठी और लंगोट पहनकर ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिला देने वाले महात्मा गांधी तक अपनी पत्नी से घिघियाकर बात करते हैं/करते थे। ‘ज्यादा भाव मत खाओ...आपको और आपकी रसिकता को मैं अच्छी तरह से समझती हूं। पिछले चौदह वर्षों से देख रही हूं आपकी रसिकता। रसिकता की आड़ में आप जो कुछ भी करते हैं, वह मैं बहुत अच्छी तरह से समझती हूं। मेरा मुंह मत खुलवाइए। मुझसे ज्यादा उड़िए भी मत...और यह बताइए कि सचमुच आॅफिस में ही हैं या कहीं और किसी कलमुंही के साथ गुलछर्रे उड़ा रहे हैं।’ अब शायद पत्नी का भी ब्लड प्रेशर हाई होने लगा। वह कूकर में लगी सीटी की तरह फुंफकारती हुई बोलीं, ‘अगर आपकी बात सच है, तो एक मरदूद मेरे पास पैसा लेकर क्यों आया है? कहता है कि ये पांच सौ बत्तीस रुपये आपके हैं। सच सच बताना, यह रुपये कैसे हैं और किस बात के हैं? अगर कहीं कोई गड़बड़-सड़बड़ बात हुई, तो समझ लेना...आपका भले ही कुछ न हो, लेकिन मैं तो जहर खाकर किसी कुएं-खाई में कूदकर जान दे दूंगी...हां।’ पत्नी की यह बात सुनकर मैं घबरा गया। आॅफिस में फुल वाल्यूम पर चल रहे एसी के बावजूद मुझे पसीना आ गया। मैंने जल्दी से हड़बड़ाते हुए कहा, ‘यार...तुम कह क्या रही हो? मेरी समझ में नहीं आ रहा है। कौन से पैसे और कैसे पैसे? और फिर...मान लो, यह पैसे मैंने ही भिजवाए हैं, तो इसमें कौन-सी आफत आ गई। तुम भी खामुख्वाह बात का बतंगड़ बना देती हो।’
‘सुनिए...जब तक पकड़ा नहीं गया था, तब तक श्रीसंतवा और चंदीलवा भी सारी दुनिया से यही कहता फिरता था कि मैं बहुत ‘आॅनेस्ट’ क्रिकेटर हूं। देश के लिए खेलता हूं, देश से बढ़कर कुछ नहीं है...पैसा तो हाथ की मैल है, इधर आता है, उधर चला जाता है...अब जब पकड़ा गया है, तो बाप रे...कैसे-कैसे कारनामे उजागर हो रहे हैं। पिद्दी भर का छोरा...और ऐसे-ऐसे कारनामे?’ उधर, पत्नी ने किस तरह आश्चर्य से मुंह फाड़ा होगा, इसकी मैं कल्पना कर सकता हूं। मैंने पत्नी की बात में संशोधन किया, ‘पिद्दी भर का नहीं... 23-24 साल का युवक...।’ पत्नी ने झिड़कते हुए कहां, ‘हां...हां...युवक...आप भी तो बड़े खिलाड़ी रहे हैं, कैसे-कैसे गुल खिलाते रहे होंगे, कौन जानता है। अब भी क्या आप अपनी हरकतों से बाज आते हैं।’ मैंने पत्नी को समझाते हुए कहा, ‘सुनो! गॉटर की मम्मी...यह पैसे किसी फिक्सिंग-विक्सिंग के नहीं हैं। राम बहल ने पिछले महीने पांच सौ कुछ रुपये मुझसे उधार लिए थे, वही लौटाने आया होगा। मैं नहीं मिला, तो वह तुम्हें दे गया होगा। तुम्हीं सोचो...मैं एक मामूली-सा व्यंग्यकार किसी से क्या फिक्सिंग कर सकता हूं। मैं अपनी सबसे सुंदर साली की कसम खाकर कह रहा हूं कि इस वक्त मैं आॅफिस में हूं, मेरे साथ कोई दुधमुंही या कलमुंही नहीं है। मुझे अब बख्शो...शाम को घर आता हूं, तो बातें होगीं।’ इतना कहकर मैंने बात खत्म की और चेहरे पर चुहचुहा आए पसीने को पोंछते हुए बुदबुदाया, ‘यह श्रीसंतवा...मरवा देगा किसी दिन हम जैसे सीधे-शरीफ लोगों को। करता खुद है...और शक के घेरे में रहते हम सब हैं।’

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