Sunday, June 16, 2013

पाती, शिल्पा भौजी के नाम

-अशोक मिश्र
शिल्पा भौजी, सच्ची-सच्ची बात बताऊं। आज मुझे पुलिस पर बहुत गुस्सा आ रहा है। यह पुलिस बहुत है नासपीटी। भला बताओ, यह भी कोई बात हुई कि जांच की, न पड़ताल। किसी उठाईगीरे के कहने पर राज भैया को पुलिस और सीबीआई वालों ने पूछताछ के लिए बुला लिया। राज भैया जैसे भले और सीधे-सादे आदमी को पूछताछ के लिए बुलाने का कोई औचित्य मेरी ही नहीं, मेरे जैसे आपके चेहते करोड़ों दर्शकों की समझ में नहीं आया। मैं तो कहता हूं कि आप जैसा जिगरा (साहस) पिछले सौ साल के हिंदी सिनेमा के इतिहास में किसी हीरोइन का नहीं रहा है। आज तक कोई हीरोइन खुलेआम यह कहने की हिम्मत नहीं जुटा सकी कि ‘दिलवालों के दिल का करार लूटने, आई हूं यूपी-बिहार लूटने।’ आय-हाय! क्या ठुमका था आपका, मेरा दिल तो कसम से हिल-डुलकर रह गया था। उन दिनों मैं नया-नया जवान हुआ था। पर्दे पर आपका नाच देखकर मेरे दिल को पच्चासी झटके लगते थे। शिल्पा भौजी, वह तो कहिए कि उन दिनों मेरी जवानी उफान पर थी और मेरा दिल भी बहुत मजबूत था, सो वे पच्चासी झटके सहन कर गया। किसी और का दिल होता, तो कब का ‘टें’ बोल गया होता। खैर...बात मैं आपके दुख की कर रहा था और बहक मैं दूसरी तरफ गया। वैसे भौजी,बुरा मत मानिएगा, बहकने की मेरी पुरानी और खानदानी आदत है। हां, तो मैं कह रहा था कि जब आपने यूपी-बिहार को ऐलानिया लूटने की घोषणा करके भी लूटा भी, तो सिर्फ राज भैया का दिल। और अपने राज भैया भी कोई मामूली आदमी हैं, करोड़-दो करोड़ रुपये तो उनके लिए मामूली रकम है। अगर वे खेल-खेल में करोड़-दो करोड़ रुपये की शर्त (कथित सट्टा) लगा ही बैठे, तो कौन-सी आफत आ गई। और फिर शर्त लगाना, कहां का गुनाह है। वह तो भला हो उमेश गोयनका का, जो अदालत में बोले और खुलकर बोले। अपना पिटा हुआ मुंह लेकर रह गई पुलिस, जब उमेश भाई ने खम (ताल) ठोंककर कहा कि पुलिस ने उनसे जबरदस्ती राज भैया का नाम लेने को कहा था। पिटाई के डर से उन्होंने राज भैया का नाम ले लिया। पुलिस वाले ठोंकते भी बहुत हैं, मार-मार कर भुरकुस निकाल देते हैं।
शिल्पा भौजी आप बुरा न मानें, तो एक बात पूछंू? राज भैया की पुलिस ने ठुकाई तो नहीं की थी? आप किसी को बताइएगा नहीं, बात दरअसल यह है कि उसे सट्टा कहा जाए या शर्त, लेकिन मेरी घरैतिन और बच्चे बात-बात में शर्त लगाते रहते हैं। आपको कुछ उदाहरण देकर बात समझाने का प्रयास करता हूं। अभी एक हफ्ते पहले की ही बात लीजिए। बीस किलो गेहूं लेने मैं अपने पूरे परिवार के साथ बाजार गया। गेहूं, सब्जी और अन्य चीजें खरीदने के बाद मेरी पत्नी ने कहा, ‘मैं शर्त लगाकर कह सकती हूं कि आप यह गेहूं कंधे पर लादकर घर तक नहीं ले जा सकते हैं।’ मुझे भी ताव आ गया। आपको तो मर्दों के ताव का अनुभव होगा ही। मैंने एक झटके से बीस किलो गेहूं की बोरी उठाई और कंधे पर लादकर घर की ओर चल पड़ा। बाजार में बच्चों के साथ खड़ी घरैतिन मुझे आगे बढ़ता हुआ देखती रहीं और फिर उन्होंने एक रिक्शा तय किया, बच्चों और बाकी बचे सामान को उस पर लादा और घर पहुंच गईं। इस भीषण गर्मी में पसीने से लथपथ हांफता हुआ जब मैं घर पहुंचा, तब तक घरैतिन और बच्चे लस्सी के चार-चार गिलास हजम कर चुके थे। मेरे घर पहुंचने पर बेटी चिल्लाई, ‘मम्मी...मम्मी...देखो पापा शर्त जीत गए...पापा शर्त जीत गए।’ पत्नी ने फ्रिज से एक गिलास ठंडा पानी निकालकर देते हुए कहा, ‘आपने बीस रुपये की शर्त जीती है, उस बीस रुपये के शाम को समोसे आएंगे।’ शिल्पा भौजी...मेरे घर में घरैतिन और बच्चे अक्सर मुझसे बेट (शर्त) लगाते रहते हैं। कभी बेटी कहती है, ‘पापा...लगी पचास रुपये की शर्त। शाम को आॅफिस से जल्दी घर आकर हम लोगों को चाऊमिन खिलाने अगर आप नहीं ले गए, तो आपको पचास रुपये देने होंगे।’ पचास रुपये की शर्त जीतने के चक्कर में न केवल आॅफिस से बहाना बनाकर जल्दी आया, बल्कि बारह सौ रुपये का होटल का बिल भी अदा किया। शर्त के पचास रुपये बेटी से मांगे, तो उसने कहा कि आप कल जो पाकेट मनी देने वाले हैं, उसमें से काट लीजिएगा।
भौजी! पत्र लिखने का मकसद आपसे यह पूछना है कि अपने घर में हम लोग जो ऐसी शर्तें लगाते हैं, क्या वे भी कानून के दायरे में आती हैं। चूंकि राज भैया यह सब कुछ भुगत रहे हैं, तो ऐसे मामले में यकीनन आपको मुझसे ज्यादा अनुभव होगा। एक बात और बताइए, आप भी राज भैया से ऐसी ही शर्त लगाती रहती होंगी। पुलिस ने क्या इन शर्तों के बारे में भी कोई पूछताछ की थी? जब से राज भैया शर्त (सट्टेबाजी) लगाने के मामले में पुलिस की गिरफ्त में आए हैं, तब से मैं भीतर ही भीतर काफी डरा हुआ हूं। कसम आपके ठुमके की, अब तो घरैतिन और बच्चे भी सहमे-सहमे से हैं। आप अपने कीमती समय में से कुछ पल निकालकर मेरा मार्गदर्शन करके मुझ जैसे करोड़ों पतियों का भला करेंगी। आपका ही-एक परेशान देवर।

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