Tuesday, July 16, 2013

हम तो ‘फेंक’ चुके सनम

अशोक मिश्र
उस्ताद गुनाहगार के घर पहुंचा, तो वे कुछ लिखने पढ़ने में मशगूल थे। चरण स्पर्श करते हुए कहा, ‘क्या उस्ताद! पॉकेटमारी का धंधा छोड़कर यह बाबूगीरी कब से करने लगे?’ गुनाहगार ने चश्मा उतारकर मेज पर रखते हुए कहा, ‘क्या करूं? दोस्तों की बात तो माननी ही पड़ती है। मेरे एक मित्र हैं लतखोर सिंह। पॉकेटमारी के धंधे में हम दोनों गुरु भाई हैं। उनका भी अच्छा भला धंधा चल रहा था। एक दिन पता नहीं किस कुसाइत (बुरे समय) में उन्होंने एक नेता का पॉकेटमार दिया। तब से न उन्हें दिन को चैन है, न रात को। उनको खब्त सवार है कि नेता बनेंगे? मैंने उन्हें लाख समझाया कि नेतागीरी बड़ी खतरनाक बीमारी है। इसके बैक्टीरिया जिसको एक बार लग जाते हैं, वह किसी काम का नहीं रहता। दिन भर लंबी-लंबी फेंकता है, रात में पगुराता है। सुबह उठकर फिर फेंकने लगता है। नहीं माने, तो मैंने सुझाव दिया कि आपके चरित्र को आधार बनाकर अगर फिल्म बनाई जाए, तो हो सकता है कि आप राजनीति में स्थापित हो जाएं। तुम तो इस पुरानी कहावत से वाकिफ ही हो। जो बोले, सो कुंडी खोले। आगामी फिल्म ‘हम तो ‘फेंक’ चुके सनम’ की पिछले चार दिन से पटकथा लिख रहा हंू। ससुरा पूरा ही नहीं हो रहा है। इस करेक्टर को सुधारता हूं, तो दूसरा बिगड़ जाता है। दूसरे को सुधारो, तो तीसरा बिगड़ने पर उतारू हो जाता है।’
मैंने उनकी बात सुनकर उत्साहित स्वर में कहा, ‘हीरो की तलाश पूरी हो गई? मेरा भी चेहरा-मोहरा हीरो जैसा ही लगता है। वैसे आप कुछ पैसे न भी दिलाएं, तो भी मैं आपकी खातिर हीरो बनने को तैयार हूं।’ उस्ताद गुनाहगार ने झिड़कते हुए कहा, ‘बाजू हट, हवा आने दे! कभी आईने में शक्ल देखी है? हीरो बनेगा? अरे! इस फिल्म का हीरो कोई सुपरलेटिव डिग्री का राजनीतिक फेंकू होगा। फेंकने की कला में पारंगत होने के साथ-साथ जिसका करैक्टर दागी हो, भ्रष्टाचार, हत्या, बलात्कार, दंगा करने और कराने के सौ-पचास केस चल रहे हों। जिसके घर में भले ही आज से दस-बीस साल पहले भूजी भांग न रही हो, लेकिन आज हर शहर में आलीशान कोठी हो, स्विस बैंक में दस-बीस नामी-बेनामी खाते हों। चुनाव के दौरान अपने मतदाताओं को लंबी-लंबी फेंककर उन्हें रिझाने में माहिर हो। ऐसा ही कोई सर्वगुण सम्पन्न नेता ही इस सुपर-डुपर साबित होने वाली फिल्म का हीरो हो सकता है। कांग्रेस में एकाध चेहरे हैं। जिन पर विचार किया जा सकता है। ये चेहरे उच्च स्तर के लंतरानीबाज हैं। ऐसी लंतरानी हांकते हैं कि कई बार तो उनकी ही समझ में नहीं आता कि वे कितनी ऊपर की फेंक गए हैं। अगर इनमें से किसी से डील हो गई, तो समझो हीरो के आने-जाने का खर्चा बच जाएगा। इस पार्टी के ज्यादातर लंतरानीबाज तो विदेश में ही डेरा जमाए रहते हैं। जिस जगह ये हों, उस जगह अपनी यूनिट लेकर पहुंच जाओ, शूटिंग करो। कांग्रेस से डील होने पर कम बजट में ही फिल्म तैयार हो जाएगी।’ हीरो बनने का चांस न दिखने से वार्ता में मजा नहीं आ रहा था। मैंने मरी-सी आवाज में कहा, ‘क्या इस फिल्म में कांग्रेसिये ही ऐक्टिंग करेंगे? दूसरी पार्टी वाले नहीं?’ मेरी बात सुनकर गुनाहगार मुस्कुराए, ‘बेहाल काहे होते हो? अब तुम इच्छुक हो, तो तुम्हें भी कोई न कोई रोल जरूर देंगे।
तनिक धीरज धरो। हां, तो मैं कह रहा था? भाजपा में भी फेंकुओं का स्टॉक कांग्रेस से कम नहीं है। एक तो जग प्रसिद्ध फेंकू हैं। उनके अलावा, कुछ दूसरे भी फेंकू हैं। उनसे भी बातचीत चल रही है। मेरा मानना है कि इस फिल्म को हीरो तो इसी पार्टी से मिल सकता है। एकदम नेचुरल...बिना कोई डेंटिंग-पेंटिंग किए, जब चाहो शूटिंग कर लो। बस, एक ही खतरा है। कहीं डायलाग बोलते बोलते..‘राघवी’ नैतिकता की बात करने लगे, तो सारा गुड़ गोबर हो जाएगा।’ गुनाहगार ने अपनी दोनों टांगें मेज पर पसारते हुए कहा, ‘अगर दोनों दल मान गए, तो स्क्रीन टेस्ट लेने के बाद एक दल के नेता को हीरो और दूसरे दल के नेता को विलेन का रोल दे दूंगा। साइड रोल में बसपा, सपा, जदयू, राजद आदि पार्टियां रहेंगी। इन दलों के महत्वपूर्ण पदाधिकारियों से बात हो चुकी है। ये लोग तैयार भी हैं।’ मैंने उकताए स्वर में पूछा, ‘आपकी इस फिल्म में सभी पुरुष ही होंगे? महिलाओं की कोई गुंजाइश है या नहीं? एकाध आइटम सॉन्ग के साथ-साथ हीरोइन के लटके-झटके भी रखिएगा कि नहीं?’ मेरी बात सुनकर उस्ताद गुनाहगार ठहाका लगाकर हंस पड़े, ‘बिना हीरोइन या आइटम सांग के अपनी फिल्म पिटवानी है क्या? हीरोइन तो सन 2045 की भावी विश्व सुंदरी छबीली रहेगी न! आय-हाय! क्या फोटोजनिक चेहरा है छबीली का? पब्लिक तो पागल हो जाएगी? बस..एक बार छबीली को फिल्मी दुनिया में डेब्यू करने दो। क्या धमाका करेगी फिल्मी दुनिया में। बॉलीवुड लेकर से ढॉलीवुड तक सिर्फ छबीली के ही चर्चे होंगे। हां, कल्लो भटियारिन के दो आइटम सॉन्ग रखने की सोच रहा हूं, लेकिन लाख कोशिश करके भी सिर्फ एक की ही गुंजाइश बन पा रही है। खैर..देखता हूं, कैसे गुंजाइश निकलती है।’ इतना कहकर उस्ताद गुनाहगार अपनी स्क्रिप्ट में उलझ गए और मैं अपने घर आ गया।

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