Sunday, August 18, 2013

दंगा

कौन हो तुम?
दंगा..
कहीं दूर से आए हो?
मेरे लिए कुछ लाए हो?
हां
गरीबी, बेकारी, भुखमरी, तबाही, खून का सैलाब
साथ में हैं मेरे
नरमुंड बेहिसाब।
क्योंकि जब मैं भड़कता हूं,
शहर का शहर साफ कर देता हूं
इसीलिए तो नेताओं का चेहता हूं।
मगर
तुम तो नंगे हो?
हमाम में तो सभी नंगे हैं
इसीलिए गली-गली, शहर-शहर, गांव-गांव दंगे हैं।
-अशोक मिश्र

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