Tuesday, November 19, 2013

सलाह के साइड इफेक्ट

-अशोक मिश्र
एक सप्ताह पहले मेरे पास मेरा अंडरवियर फ्रेंड खुराफात चंद ‘बकवासी’ आया। अंडरवियर फ्रेंड बोले तो लंगोटिया यार, नर्म सचिव। बकवासी काफी उदास था। उसका बॉस आए दिन किसी न किसी बहाने रपटाता, डांटता रहता है। दोस्तो! रपटाने की कोशिश तो मेरा बॉस भी करता है, लेकिन मैं हूं कि रपटता ही  नहीं। और अगर कहीं खुदा न खास्ता किसी दिन रपट भी जाऊं, तो रपट पड़े, तो ‘हर गंगे’ वाली कहावत चरितार्थ कर लेता हूं। मैंने उससे कहा, ‘देख तुझमें आत्म विश्वास की कमी है। तू अपना आत्म विश्वास बढ़ा। इसके लिए सबसे पहले तो अमेरिकन टी शर्ट के साथ अफ्रीकन लुंगी पहन। क्या गजब का लुक दिखेगा तेरे पर।
मैडोना ने पहना था न एक बार। उसका भी बॉस उससे खफा रहता था, लेकिन बीड़ू...एक दिन वह अमेरिकन कंपनी ‘बेटा टी पी’ की शर्ट और अफ्रीकन कंपनी ‘लातो मारतो’ की लुंगी पहनकर आफिस क्या गया, उसका बॉस ऐसा रपटा..ऐसा रपटा कि वह बॉसगीरी ही भूल गया। बीड़ू..बस एक बार..एक बार तू मेरा यह फार्मूला आजमाकर देख। बॉस क्या..तेरे आफिस के आसपास काम करने वाली सारी लड़कियां तुझे देखकर एकदम फ्लैट न हो जाएं, तो कहना। अगर किसी दिन बॉस की बॉसिनी आफिस आ जाएं, तो तू शरीर पर वह डियो छिड़ककर क्या नहाकर जा जिसकी ब्रांडिंग अपने फेवरेट फिल्म स्टार सल्लू भाई करते हैं। फिर देखियो कमाल।’
मैं सांस लेने के लिए रुका ही था कि मेरा दोस्त खुराफात चंद गुर्रा उठा, ‘तू मेरा दोस्त है या दुश्मन? अभी तो बॉस डांटता-डपटता ही है, तेरा कहा किया, तो नौकरी से भी हाथ धोना पड़ेगा। तू मरवाएगा किसी दिन मुझे, पक्का विश्वास हो गया है। और फिर तेरा यह मैडोना पुल्लिंग है या स्त्री लिंग? तू पढ़ता-लिखता तो है नहीं, बस कलम घसीटू पत्रकार बना फिरता है। मैडोना का पूरा नाम है मैडोना लुईस चिकोने। बहुत बड़ी फिल्म स्टार हैं वे।’ मैंने भी उसे घूरते हुए कहा, ‘अबे चमगादड़! क्या फर्क पड़ता है कि मैडोना स्त्री है या पुरुष? बात कॉन्फि डेंस की है। कितनी कान्फिडेंस से मैं स्त्री को पुरुष और पुरुष को स्त्री बनाता जा रहा हूं। मेरी जबान लड़खड़ाई, अपनी कमअक्ली के बारे में सोचकर? नहीं न...सोच मुझमें ऐसा क्या है जो तेरे में नहीं है। मेरी मां ने बचपन से ही मुझे दूध कम कान्फिडेंस ज्यादा पिलाया है। आधी कटोरी दूध में पाव भर धनिये का रस मिलाकर पिलाती थी मुझे। किसी ने उनसे कह रखा था कि विश्व विजेता सिकंदर ने भी इंडिया आने के बाद दूध और दही के मिश्रण में धनिये का रस मिलाकर पिया था। अपने फेंकू भाई तो बकरी के दूध में धनिये और पुदीने का रस मिलाकर रोज पीते हैं। सबसे पहले सबसे पहले तो तू ये देशी और सस्ते रेजर और जेल से दाढ़ी रेतना बंद कर। इंग्लैंड की फेमस कंपनी का रेजर और जेल इस्तेमाल कर। देशी रेजरों और साबुनों से दाढ़ी मूंड़कर अपना स्टैंडर्ड मत गिरा। सबके सब बदल डाल। अपने घर की चड्ढी-बनियान से लेकर पैंट-बुश्शर्ट तक। दादी, काकी नानी से लेकर अम्मा-बप्पा तक। पत्नी-बच्चों से लेकर गर्लफ्रेंड्स तक। फिर देखो कमाल। दादी नानी को ग्रैंड मॉम, काकी, मामी, मौसी को आंटी, रमुआ की अम्मा, गीता की मम्मी को डियर, डार्लिंग, जानू कहकर तो देखो, कैसा रोमांच पैदा होता है अंतस में। गर्लफ्रेंड तो भूलकर देशी मत रखना। मुझे देख, आज तक देशीवालियों को घास ही नहीं डाली, विदेशी भाव ही नहीं देती, इसलिए अपना स्टेट्स तो मेनटेन है। तू बेवजह छबीली, नुकीली, रंगीली के चक्कर में अपना टाइम खोटा कर रहा है, पामेला, कैली, बैली जैसियों की कल्पना कर, फिर देख कितना मजा आता है। मोक्ष की प्राप्ति जैसा आनंद। खुराफात चंद बकवासी ने मेरी बात सुनकर गहरी सांस ली और बिना कुछ बोले उठकर चला गया। कल मेरे एक दूसरे मित्र ने बताया कि खुराफात चंद बकवासी पिछले कई दिनों से अस्पताल में भर्ती है। मैं मित्रतावश उससे मिलने अस्पताल गया। सिर और दोनों पैरों में पट्टियां बंधी हुई थीं।मुझे देखते ही बकवासी उठा और पास में रखा मोटा डंडा उठाकर लंगड़ाते हुए दौड़ा लिया। मैंने भागते हुए कहा, ‘अबे तू कहीं पागल तो नहीं हो गया है?’ खुराफात चंद ने फेंककर डंडा मारते हुए कहा, ‘हां..मैं पागल हो गया हूं और इस पागलपन में तेरी जान लेकर छोडूंगा। नालायक! तेरे चक्कर में अम्मा-बप्पा से पिटा ही पिटा, बीवी ने भी जमकर ठुकाई की। तेरे जैसा दोस्त तो किसी दुश्मन का भी न हो कसाई! मैंने तो सिर्फ अम्मा-बप्पा की जगह डैड-मॉम और बीवी को डार्लिंग कहकर क्या संबोधित किया कि लोगों ने समझा कि मेरे सिर पर ब्रह्म सवार हो गया है। लोग ओझा के पास ले जाने लगे, तो मैंने विरोध किया। लोगों ने समझा बरम (ब्रह्म पिशाच) विरोध कर रहा है। इसी बीच किसी ने कहा कि इन्हें पीटो तो बरम को चोट पहुंचेगी और वह भाग खड़ा होगा। बस फिर क्या था? अम्मा ने सिर पर लट्ठ जमाया, तो बीवी ने बरम भगाने के चक्कर में मेरी दोनों टांगें तोड़ दी।’ सलाह के साइड इफेक्ट समझ में आते ही मैंने वहां से खिसक लेने में ही भलाई समझी।

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