Friday, December 13, 2013

बस..नीयत सौ टंच होनी चाहिए

-अशोक मिश्र 
चार राज्यों के चुनाव परिणाम घोषित होने वाले दिन सुबह अपने इलाके के विधानसभा उम्मीदवारों से मिलकर उनका हाल-चाल जानने और जीतने-हारने पर उनकी प्रतिक्रिया लेने को खूब लकदक कपड़े पहनकर निकलने लगा, तो घरैतिन ने टोक दिया, ‘किसी छमिया से मिलने जा रहे हैं क्या? एक दूल्हे राजा बनकर!’ घरैतिन के टोकने से कुछ परसेंट उत्साह कम तो हुआ, लेकिन मनसूबों पर पानी फिरने से बच गया। मैंने मतदाताओं की तरह इठलाते हुए कहा, ‘हां..तुम्हें कोई आपत्ति?’ घरैतिन मुस्कुराईं और बोलीं, ‘नहीं..मुझे कोई आपत्ति नहीं है। एक बात बताऊं, है बड़े मार्के की। अगर खुश हो जाएं, तो कोई गहना-गुरिया खरीद दीजिएगा, बाकी आपकी मर्जी..। ‘बाबा तुलसीदास’ जी ने एक बात बहुत पते की कही है, जस करनी तस भोगो ताता, नरक जात काहे पछताता। जैसा आप करेंगे, वैसा तो भोगना ही पड़ेगा। छमिया से मिलने जा रहे हैं, तो जाइए। अब तो रोकने की जरूरत भी नहीं है। कहीं किसी दिन छमिया का मूड बिगड़ा, तो ‘उलटे बांस बरेली को लदते’ कितनी देर लगेगी। सुनिए..अब वह जमाना लद गया, जब जीजा अपनी सालियों से रस ले-लेकर मजाक करते थे। अब तो जीजा को अपनी सालियों और सलहजों से किया गया मजाक भारी पड़ सकता है। अपने पड़ोस में रहने वाले श्रीवास्तव जी हैं न! उन्होंने अपनी पचपन साल की साली से कहीं मजाक भर कर लिया था। उस दिन उनकी साली की अपने पति से थोड़ा बहुत नोक-झोंक गई थी। बस, बना दिया तिल का ताड़। पहुंच गए श्रीवास्तव जी जेल। तीन दिन बात बड़ी मुश्किल से जमानत हुई है। वह भी बेचारी साली के रो-रोकर अपनी गलती मांगने और श्रीवास्तव जी के शरीफ होने की दुहाई देने पर। अब तो बेचारे श्रीवास्तव जी साली, सलहज जैसे शब्दों से ऐसे बिदकते हैं, मानो किसी सांड को लाल कपड़ा दिखा दिया गया हो।’
घरैतिन की बात सुनकर मुझे ताव आ गया। मुझे लगता है कि अपने कश्मीरी चचा फारुख को भी ऐसे ही किसी वजहों से ताव आया होगा और वे पता नहीं किस मनहूस घड़ी में कह बैठे, ‘अब तो हालात इतने बदतर हैं कि मैं किसी महिला को अपना सेक्रेटरी तक रखने से डरने लगा हूं।’ जिस घड़ी को मैं बड़े धैर्य से टालने की कोशिश में था, वह आ ही गई, ‘तू..बार-बार सालियों का उदाहरण देकर क्या साबित करना चाहती है..आंय? मैं लफंगा हूं, तेरी बहनों और भाभियों से नैन मटक्का करता हूं। उन्हें छेड़ता हूं, उनके साथ ऐसे-वैसे मजाक करता हूं। अरे..मैं तो घास भी नहीं डालता उनके आगे। तुम्हारी बहनें अपने आप को समझती क्या हैं? तुम्हारी बहनों के अलावा बहुत सारी लड़कियां हैं, जो मुझ पर आज भी मरती हैं। अगर मैं इस उम्र में भी बन-ठनकर निकल जाऊं, ‘उह..आह की आवाज है आती हर ओर से।..होश वालीं भी मदहोश आएं रे नजर..।’ कोई इधर इठलाती हुई कहती है, जीजा..ऐसे मत देखो। कोई उधर ठुनकती है, जीजा जी... आप कुछ बोलते क्यों नहीं? मुझसे नाराज हो? जीजा..देखो, मैं सुंदर लग रही हूं न! अजीब हालत हो जाती है मेरी। सालियों और सलहजों को निहारो, तो तुम्हारा मुंह चौखंभे मीनार की तरह बन जाता है, न देखो, तो यह सुनने को मिलता है, जीजा जी..घमंडी हो गए हैं, उन्हें पता नहीं किस बात का घमंड है, बोलते-चालते ही नहीं हैं। सच बताऊं, तुम्हारी बहनों और भाभियों ने मुझे जीजा नहीं चकरघिन्नी बना दिया है। जब से शादी हुई है, मैं नाच रहा हूं तुम तीनों के बीच।’ मेरी बात सुनते ही घरैतिन ठहाका लगाकर हंस पड़ीं, ‘आप मर्दों ने कैसी-कैसी खुशफहमियां पाल रखी हैं अपने मन में।  कोई तुम्हारी ओर सामान्य नजर से ही देख ले, तो तुम्हें लगता है कि सामने वाली तुम पर मर-मिट गई है। मेरे मायके जाते ही सबसे पहला काम मेरी बहनों और भाभियों को मस्का मारना ही होता है। शालू, तुम अच्छी लग रही हो। कामिनी..तुम्हें देखता हूं, तो मेरा दिल राजधानी एक्सप्रेस हो जाता है। अंकिता, तुम मुझे ऐसे मत देखा करो, दिल में कुछ-कुछ होने लगता है। जिन बातों और कामों को मेरे भाई देखकर बिदकते हैं, तुम मेरी भाभियों के उसी काम और बातों की प्रशंसा में ऐसे कसीदे काढ़ते हो, मानो कोई चारण-भाट अपने अन्नदाता महाराज की प्रशंसा में विरुदावलि गा रहा हो। ऐसे में वे क्या करें बेचारी। तुम्हारा मान रखने के लिए उन्हें आपकी बातों पर हंसने-मुस्कुराने का नाटक करना पड़ता है।’
घरैतिन की बात सुनते ही मुझे झटका लगा। मन ही मन सोचने लगा, ‘अच्छा..तो सुमन (मेरी सबसे छोटी साली) की वह ‘बलिहारी जाऊं’ वाली नजर सिर्फ मात्र छलावा है, धोखा है। कितनी बड़ी एक्टर हैं, मेरी ये सालियां और सलहजें? हाय..हाय..मेरे जैसा सीधा-सादा अधेड़ ‘युवक’ अपने ससुरालवालियों के कहे को सच मानकर उनके आगे-पीछे घूमता रहा।’ घरैतिन की बात सुनकर मैं मायूस हो गया, तो घरैतिन ने पुचकारते हुए कहा, ‘मेरी बहनों या भाभियों से डरने की तब तक जरूरत नहीं है, जब तक आपकी नीयत ठीक है। साली, सलहजें हैं, तो मजाक होगा ही। बस, आपकी नीयत सौ टंच होनी चाहिए। वरना..।’ मैं अपने चेहरे पर चुहचुहा आए पसीने को पोंछता हुआ बाहर आ गया। पिछली बार ससुराल जाने पर सालियों से की गई बातचीत बहुत देर तक कान में गूंज-गूंजकर हलाकान करती रही।

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