Tuesday, October 14, 2014

राजनीतिक दलों का बेनकाब होता चेहरा

-अशोक मिश्र
धीरे-धीरे उत्तर प्रदेश में लव जेहाद का असली चेहरा सामने आता जा रहा है। हालांकि, बहुत सारे ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब मिलना अभी शेष है। कुछ राजनीतिक दलों ने लव जेहाद को चुनावी हथियार बनाकर उत्तर प्रदेश के साथ-साथ हिंदी पट्टी के दूसरे प्रदेशों की राजनीति को गरमाने की कोशिश की। किसी हद तक वे इसमें सफल भी हुए। एक महीने पहले देश में हुए उपचुनावों के दौरान लव जेहाद और गरबा नृत्य में मुसलमानों के आने-जाने को लेकर कई तरह की बातें कही गईं। मध्य प्रदेश में भाजपा के कुछ विधायकों ने अपनी सांस्कृतिक संस्थाओं के माध्यम से लोगों को सचेत किया कि वे अल्पसंख्यकों को हिंदुओं के धार्मिक आयोजनों में न आने दें। वोट बैंक के ध्रुवीकरण की आशा में हिंदुत्ववादियों ने अल्पसंख्यकों के खिलाफ ऐसे-ऐसे तीर छोड़े कि जैसे उनका नामोनिशान मिटाकर ही दम लेंगे। गुजरात के इमाम मेहदी हुसैन जैसे लोगों ने भी माहौल को खराब करने का प्रयास किया। इसके पीछे किन लोगों का हाथ था, यह कहने की जरूरत नहीं है। गरबा में राक्षस आते हैं यह कहने वाला इमाम मेहदी हुसैन मुसलमानों के उन तत्वों का प्रतिनिधि है, जो थोड़े से लाभ के लिए सांप्रदायिक माहौल को बिगाड़ने में थोड़ा सा भी संकोच नहीं करते हैं, ठीक हिंदुत्ववादियों की तरह। ऐसे हिंदुत्ववादियों और इस्लामवादियों का इंसानियत, धर्म, राष्टÑ और संप्रदाय से कोई नाता नहीं होता है। बस, ये एक चेहरे होते हैं, सियासी गणित के। इस बात को साबित करती है मेरठ के खरखौदा गांव में हुए कथित धर्मांतरण और लव जेहाद की खुलती कलई।
दो महीने पहले खरखौदा गांव की 22 वर्षीय एक युवती ने अल्पसंख्य समुदाय के एक युवक पर सामूहिक बलात्कार और जबरन धर्म परिवर्तन का आरोप लगाकर सनसनी फैला दी थी। दो महीने बाद आज वही युवती कह रही है कि उसने अपने मां-बाप के दबाव में आकर यह बयान दिया था। मेरे मां-बाप को नेताओं ने ऐसा कहने और करने के लिए पैसे दिए थे। दो महीने पहले जब जबरन धर्मांतरण की बात सामने आई थी, तो हिंदुत्ववादी संगठनों और भाजपा ने इसको लेकर खूब बवाल किया था। प्रदेश की सपा सरकार भी संदेह के घेरे में थी। हालांकि, युवती की इस बात पर विश्वास कम है कि वह पहले गलत कह रही थी, अब सही कह रही है। इस कथित लव जेहाद और धर्मांतरण की सगााई क्या है? यह निष्पक्ष जांच का विषय है। यहां सवाल लड़की की गलत बयानी का तो है, देश की सियासी पार्टियों की मामले को अपने हित के लिए तूल देने की है। मेरठ, मुजफ्फरनगर, शामली, अलीगढ़ आदि जिलों में जिस तरह से बाकायदा एक नीयत और नीति के तहत माहौल को बिगाड़ने की कोशिश की गई, वह भारतीय लोकतंत्र के लिए काफी शर्मनाक है। ऐसी स्थिति के लिए किसी एक राजनीतिक दल, व्यक्ति या संप्रदाय को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। वोटों के ध्रुवीकरण की राजनीति में सपा, बसपा, भाजपा, कांग्रेस से लेकर अन्य दूसरी छोटी-बड़ी पार्टियां शामिल हैं। कोई दूध का धुला नहीं है। इसके लिए सबसे बड़ा दोषी और जिम्मेदार समाज का वह तबका भी है, जो वास्तविकता को जाने-परखे बिना धार्मिक, सांप्रदायिक उन्माद का शिकार हो जाता है। सबसे ज्यादा अहम रोल तो इसी तबके का होता है। हालांकि इस तबके में शामिल लोगों की संख्या बहुत कम होती है, लेकिन कई बार ये लोग पूरे समाज और देश-प्रदेश पर भारी पड़ते हैं। सबसे ज्यादा चिंताजनक बात यही है। राजनीतिक दल ऐसे लोगों की इस दुखती रग से वाकिफ होने के चलते हर बार फायदा उठाने में सफल रहते हैं।

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