Saturday, November 29, 2014

विघ्न संतोषियों को चैन नहीं

अशोक मिश्र
दो आदमी रेलवे स्टेशन पर बैठे गाड़ी का इंतजार करने के साथ-साथ बतकूचन कर रहे थे। उनमें से एक ने कहा, 'भाई साहब..ये दुनिया वाले लोग हैं, जीने नहीं देते। आप संकट में हों, तो हथेलियां ठोक कर हंसेंगे, सुखी हों, तो वे इस चिंता में दुबले होते रहेंगे कि अमुक सुखी क्यों है? ये लोग भी न..किसी को सुखी नहीं देख सकते है। अगर आप अपने घर के बाहर खड़े भले ही किसी पेड़-पौधे, गिलहरी-गौरेया को देख रहे हों, लेकिन देखने वाले तो यही समझेंगे कि आप फलां की बीवी को ही घंटे भर से निहार रहे हैं। यह तो हद हो गई, यार। आपकी बीवी भले ही अपने भाई के साथ बाजार जा रही हो, लेकिन मोहगे की औरतें खुसुर-फुसर बतियाती मिल जाएंगी, देखो! कैसे मटक-मटक कर चल रही है। हाय राम..लगता है कोई नया मुर्गा फांसा है।'
दूसरे आदमी ने कंबल को अपने चारों ओर लपेटते हुए कहा, 'सही कह रहे हो, भाई। कुछ विघ्नसंतोषी टाइप की महिलाएं तो आपको यह बताने पहुंच जाएंगी, भाई साहब! भाभी जी पर जरा कसकर निगरानी रखिए। कल वह बाजार में सब्जीवाले से बड़ी देर तक हंस-हंस कर बतिया रही थीं। मुझे तो कुछ गड़बड़ लग रही है। आपको अपना मानती हूं, सो सचेत करने चली आई। बाकी आप जानें, आपका काम जाने।'
पहले वाले ने गंभीरता से सिर हिलाते हुए कहा, 'सही कह रहे हो भइया। भला बताओ.. अगर मंत्री महोदया अपना हाथ दिखाने ज्योतिषी के पास चली ही गईं, तो इसमें कौन सा पहाड़ टूट पड़ा? लेकिन इस देश के विघ्न संतोषियों को क्या कहा जाए। उन्हें यह भी रास नहीं आया। लगे बात का बतंगड़ बनाने। अरे वे मंत्री हो गईं, तो क्या उनका निजी जीवन ही नहीं रहा। मंत्री होने के अलावा वे महिला हैं, उनके भी बाल-बच्चेे हैं, घर-परिवार है। अब अगर उन्हें अपने भविष्य की चिंता है, अपने करियर की चिंता है, तो इसमें गलत क्या है?
 मंत्री होने का यह मतलब नहीं है कि वे अपने करियर की उन्नति के बारे में न सोचें। किसी से राय-मशविरा ही न लें। भला बताओ, किसी सरकारी या निजी संस्थान में काम करने वाला चपरासी भी यह सोचता है कि वह मुख्य चपरासी, फिर जूनियर क्लर्क, फिर हेड क्लर्क और फिर धीरे-धीरे निदेशक की कुर्सी तक कैसे पहुंचेगा। मंत्री महोदया ने भी यह पूछ लिया कि वे अब आगे क्या बनेंगी, तो इसमें बुरा क्या है? लोगों को यह भी नहीं पच रहा है। कई तरह की बातें कर रहे हैं। जानते हैं, अगरमेरा वश चले,तो इन विघ्नसंतोषियों को कानून बनाकर देश निकाला दे दूं।' तभी उन दोनों की गाड़ी प्लेटफार्म पर आकर खड़ी हो गई और दोनों बातचीत बीच में ही छोड़कर जनरल डिब्बे की ओर बढ़ गए।

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