Wednesday, December 3, 2014

अहंकार त्यागने की शिक्षा देने वाले गुरु दत्तात्रेय

http://epaper.jagran.com/ePaperArticle/03-dec-2014-edition-Delhi-City-page_13-7332-3546-4.html
-अशोक मिश्र
प्रकृति और पर्यावरण के साथ-साथ शैव, वैष्णव और शाक्त तीनों संप्रदाय को एकता और भाईचारे का पाठ पढ़ाने वाले गुरु और अवतारी पुरुष दत्तात्रेय ने मानव समाज को हमेशा प्रकृति संरक्षण का ही पाठ पढ़ाया। वे गुरुओं के गुरु माने जाते हैं। उनकी शक्ति अपार थी, लेकिन शक्ति का उपयोग मानव कल्याण में हो, इसका संदेश ही उन्होंने दिया है। आज जिस तरह प्रकृति का दोहन, जाति-धर्म के नाम पर हिंसा हो रही है, उससे निजात पाने का तरीका सद्गुरु दत्तात्रेय सदियों पहले बता चुके थे। शैव, वैष्णव और शाक्त तीनों संप्रदायों को एकजुट करने वाले भगवान दत्तात्रेय का प्रभाव हजारों सालों से पूरे भारत में है। 
कहते हैं कि भगवान विष्णु के अवतार दत्तात्रेय ऋषि अत्रि और माता अनुसूइया के पुत्र थे।  उन्होंने मानव समाज को साधक रूप में उस योग की शिक्षा दी, जिसके सहारे ईश्वर से एकरूपता स्थापित की जा सकती है। उनका मानना था कि ईश्वर और प्रकृति दोनों एक ही हैं। यही वजह है कि उन्होंने 24 गुरु किए जिनमें पृथ्वी, वायु, जल, अग्रि, आकाश, सूर्य से लेकर सांप और मछुआरा तक शामिल हैं। उन्होंने इन प्राकृतिक जीवों और पदार्थों को अपना गुरु बनाकर यह संदेश देने का प्रयास किया कि जब तक पृथ्वी पर संतुलन कायम रहेगा, मानव समाज और जीवन की अजस्र धारा प्रवाहित होती रहेगी। जैसे ही मनुष्य ने प्रकृति के कार्यों में हस्तक्षेप किया, वह अपने विनाश की आधारशिला रख देगा।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन मृग नक्षत्र में दत्तात्रेय का जन्म हुआ था। महाराष्ट्र के औदुंबर में दत्तात्रेय उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। तमिलनाडु, उत्तरांचल, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में दत्तात्रेय जयंती बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। सदियों से अपनी सर्वोच्चता के लिए संघर्ष करने वाले शैव, वैष्णव और शाक्त तीनों संप्रदायों के विद्वानों, मनीषियों को एकजुट करने का प्रयास बहुत पहले दत्तात्रेय कर चुके हैं। वे अपने कार्य में सफल भी रहे। यह एक ऐसा गुरुतर कार्य था, जो तत्कालीन परिस्थियिों में काफी दुष्कर था। लेकिन उन्होंने यह कार्य कर दिखाया। इसीलिए उन्हें गुरुओं का गुरु भी कहा जाता है। 
जिन दिनों दत्तात्रेय का जन्म हुआ था, उन दिनों समाज में काफी विषमता, जाति-पांति, ऊंच-नीच और धार्मिक मतवैभिन्य व्याप्त था। इससे वे काफी दुखी भी रहते थे। मानव समाज में शांति स्थापित करने और कुरीतियों को दूर भगाने के लिए जरूरी था कि वे समाज को पहले जानें, सामाजिक विसंगतियों के मूल को पहचानें। इसीलिए उन्होंने जीवन भर भ्रमण किया। जहां भी जाते, प्रकृति की सुरक्षा का उपदेश देकर सामाजिक असमानता को दूर करने का सहज मार्ग बताते और कुछ दिनों बाद फिर अपनी राह चल देते। धीरे-धीरे दत्तात्रेय महायोगी और महागुरु के रूप में पूजनीय होते गए।
शास्त्रों के मुताबिक दत्तात्रेय ने चौबीस गुरुओं से शिक्षा ली मनुष्य, प्राणी, वनस्पति सभी शामिल थे। यही वजह है कि दत्तात्रेय की उपासना में अहं को छोडऩे और ज्ञान द्वारा जीवन को सफल बनाने का संदेश है। धार्मिक दृष्टि से उनकी उपासना मोक्षदायी मानी गई है। दत्तात्रेय की उपासना ज्ञान, बुद्धि, बल प्रदान करने के साथ शत्रु बाधा दूर कर कार्य में सफलता और मनचाहे परिणामों को देने वाली मानी गई है। धार्मिक मान्यता है कि भगवान दत्तात्रेय भक्त की पुकार पर शीघ्र प्रसन्न होकर किसी भी रूप में उसकी कामना पूर्ति और संकटनाश करते हैं।  कृष्णा नदी के तट के बीच में महाराष्ट्र के औदुम्बर में श्रीदत्त महाराज का मंदिर स्थापित है। यहां दत्तात्रेय की स्वयंभू मनोहर पादुका के दर्शन करने का पुण्य मिलता है। 

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