Sunday, December 21, 2014

सिर्फ एक सियासी खेल है धर्मांतरण

-अशोक मिश्र
अगर देश की इतनी बड़ी आबादी में से लाख-दो लाख ईसाई या मुसलमान या फिर दोनों संप्रदाय के लोग अपना धर्म परिवर्तन करके हिंदू हो जाएं, तो उससे क्या हिंदू धर्म में कोई क्रांतिकारी परिवर्तन हो जाएगा? जिस देश में साठ-सत्तर करोड़ से भी ज्यादा हिंदू रहते हों, उस देश में चंद लोगों के धर्म परिवर्तन कराने से धार्मिक क्रांति होने वाली नहीं है। इस बात को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके सहयोगी संगठनों को अच्छी तरह गांठ बांध लेनी चाहिए। आगरा में जिन ५८-६० परिवारों ने पहले धर्म परिवर्तन किया और बाद में मुकरते हुए हिंदुत्ववादी संगठनों पर धोखाधड़ी का आरोप लगाया, वह देश के माहौल को देखते हुए चिंताजनक है। आगरा में पहले धर्म परिवर्तन और बाद में धोखाधड़ी का आरोप लगाने वाले ५८-६० मुस्लिम परिवारों के लोग इतने भी नादान या नाबालिग नहीं थे कि कोई उनके हाथों में मूर्तियां दे दे, उनके माथे पर तिलक लगाए, हाथों में कलावा बांधे और बाकायदा समारोह आयोजित करके उनसे हवन करवाए और वे यह न जान पाएं कि उनका धर्मांतरण कराया जा रहा है। इन सभी परिवारों की अगुवाई कर रहे इस्माइल (राजकुमार) का कहना है कि उन्हें लालच देकर जबरन धर्म परिवर्तन कराया गया। हिंदू धर्म अपनाने के लिए पैसे और बीपीएल राशन कार्ड, एक-एक प्लॉट देने का वादा किया गया था। अब जब ये सारे आश्वासन पूरे होते दिखाई नहीं दे रहे हैं, तो यह धोखाधड़ी हो गई!
दरअसल, आगरा में धर्म परिवर्तन के नाम पर जो कुछ भी हुआ, उसमें दोनों पक्षों की बाकायदा सहमति थी। धर्मांतरण या कथित घर वापसी के बाद जब खबरें मीडिया में आईं और इसको लेकर विवाद पैदा हुआ, तो धर्म परिवर्तन करने वालों ने वही किया, जो उस हालत में कोई भी करता। यानी कि बहानेबाजी, आरोप-प्रत्यारोप और चोंचलेबाजी। अब इस मामले में पुलिस ने कथित धर्मांतरण कराने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आनुषांगिक संगठन धर्म जागरण प्रकल्प (मंच) और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया है, तो स्वाभाविक है कि निकट भविष्य में दोनों पक्ष अपने-अपने तर्क और सुबूत के साथ अदालत में होंगे। धर्म परिवर्तन या कथित घर वापसी करने वाले कोलकाता के मूल निवासी  हैं या फिर बांग्लादेशी, यह भी एक विवाद का मुद्दा है। जिन ५८-६० मुस्लिम परिवारों के धर्मांतरण का मुद्दा जब संसद से लेकर सड़क तक को गर्मा रहा है। अब धर्मांतरण या कथित घर वापसी को लेकर हिंदू और अन्य धर्मों से जुड़े संगठनों की बयानबाजी दुखद है। यह बयाबबाजी देश में असुरक्षा का माहौल पैदा कर रही है। इसमें हिंदुत्ववादियों के अलावा दूसरे धर्मों के लोग भी शामिल हैं। अभी जो खबरें आ रही हैं, उसके मुताबिक ईसाई संगठन भी इससे बरी नहीं हैं। हो सकता है कि कुछ मुस्लिम संगठन भी ऐसा ही कर रहे हों।
अब जब मामले ने राजनीतिक रुख अख्तियार कर लिया है, तो स्वाभाविक है कि देश के सारे दल इसको लेकर अपने-अपने वोट बैंक को साधने की दिशा में सक्रिय हो जाएंगे, बल्कि हो गए हैं। अब सड़क से लेकर संसद तक देश खास तौर पर उत्तर प्रदेश की सियासत को गर्माने की कोशिश की जाएगी। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने तो यहां तक कहा था कि आगामी क्रिसमस पर पांच हजार अल्पसंख्यकों की घरवापसी कराई जाएगी। हालाँकि अब इस आयोजन को टाल देने की बात कही जा रही है। आरएसएस ऐसे आयोजन पहले भी कर चुका है। हां, ऐसे आयोजन पहले इस तरह डंके की चोट पर नहीं होते थे। यह शायद पहली बार है कि संघ और उसके आनुषांगिक संगठनों ने खुले आम धर्म परिवर्तन या कथित घर वापसी की घोषणा की है। हिंदू धर्म त्यागकर ईसाई या मुसलमान बनने वालों या इस्लाम और ईसाइयत त्याग कर कथित रूप से हिंदू बनने वालों को एक बात अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए कि वैसे तो धर्मांतरण पर भारत में कोई संवैधानिक रोक नहीं है। यद्यपि केंद्र सरकार कह रही है कि यदि विपक्ष चाहे तो धर्मान्तरण पर प्रतिबन्ध लगाने को सरकार तैयार है। लेकिन इससे पहले जिन लोगों ने अपना धर्म त्याग कर किसी प्रेरणावश, लालच या अपने धर्म की विसंगतियों से ऊबकर दूसरे का धर्म अपनाया है, उनकी क्या दशा हुई है, इसे भी वे जान-समझ लें। आजादी से पहले और आजादी के बाद जितने भी लोगों ने किसी कारणवश हिंदू धर्म का परित्याग किया है, वे आज उस धर्म के लोगों द्वारा कितने स्वीकार किए गए, यह जानना बहुत जरूरी है। जहां तक हिंदुत्व की बात है, तो उसके बारे में एक बात अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए कि हिंदू बनाए नहीं जाते हैं, पैदा होते हैं। हिंदू धर्म की सदस्यता जन्म से ही प्राप्त होती है। इसके लिए कोई अनुष्ठान, आयोजन या प्रयास नहीं करना पड़ता है। हिंदू धर्म का कट्टर आलोचक भी हिंदू ही होता है, यदि वह हिंदू परिवार में पैदा हुआ है, जबकि मुसलमान बनने के लिए उसका अल्लाह पर विश्वास, खतना होना, कुरान की आयतों पर विश्वास रखना जरूरी होता है। मुसलमान बनने की एक निश्चित प्रक्रिया है, उसके बाद ही वह मुसलमान होता है। ऐसा ही ईसाई धर्म में भी होता है। बाकायदा एक धार्मिक अनुष्ठान के बाद ही वह अपने को ईसाई कह सकता है, लेकिन हिंदू..? बच्चा तो हिंदू घर में पैदा होते ही हिंदू हो जाता है।
अब जो लोग ईसाई या मुस्लिम धर्म त्याग कर हिंदू बनेंगे, क्या वे ब्राह्मण हो जाएंगे? क्षत्रिय हो जाएंगे, वैश्य हो जाएंगे या दलितों की तरह जीवन बिताने को अभिशप्त होंगे? उन्हें समाज का वह तबका, जो अपने को उच्च मानता है, उन्हें गले से लगा लेगा? उनकी हालत तो ठीक वैसी ही होगी, जो न घर का हुआ, न घाट का। ऐसे परिवारों में क्या हिंदू समाज का सबसे निचला तबका भी अपनी बहन-बेटी का रिश्ता लेकर जाएगा? फिर लोग कथित धर्मांतरण के बाद मुंगेरी लाल की तरह सुखद जीवन यापन के सुहाने सपने क्यों देखते हैं? भारतीय संविधान  के निर्माता कहे जाने वाले डॉ. भीमराव अंबेडकर ने हिंदू समाज की असमानताओं, विसंगतियों और जाति-पांति जैसी क्रूर प्रथाओं से आजिज आकर बौद्ध धर्म अपना लिया था, लेकिन कहते हैं कि बाद में बौद्ध धर्म में अपनाए जा रही कुछ विसंगतियों से वे भी दुखी हो गए थे। किसी भी धर्म से किसी दूसरे धर्म में जाने वाले लोगों से एक बार यह जरूर जानने की कोशिश की जानी चाहिए कि वे जिन रूढिय़ों, कुप्रथाओं, ऊंच-नीच के भेदभावों से ऊबकर उन्होंने अपना धर्म त्यागा था, तो क्या वे जिस धर्म में गए, उसमें यह विसंगतियां हैं या नहीं? उनका जवाब ही सारी हकीकत को उजागर कर देगा। ऊंच-नीच, छोटे-बड़े का भेदभाव हर धर्म में मौजूद है। ऐसे में जाहिर है कि आगरा में धर्म परिवर्तन केपीछे कोई लालच, कोई दबाव, कोई अपेक्षा काम कर रही थी। अभी तो इस बात का खुलासा होना बाकी है कि आगरा में कथित रूप से धर्मांतरण करने वालों को क्या-क्या आश्वासन दिए गए थे? उन्होंने क्या-क्या अपेक्षाएं हिंदुत्व के कथित ठेकेदारों से की थी और जब पूरी नहीं हुईं या मुस्लिम संगठनों का दबाव पड़ा, तो वे अपने बयान से पलट गए या धोखाधड़ी का आरोप लगाकर अपनी सांसत में फंसी जान छुड़ाने की जुगत में हैं।
कोई माने या न माने, लेकिन इतना तो तय है कि पूरी दुनिया में धर्मांतरण एक सियासी खेल है। इस खेल में हिंदूवादी संगठन लगे हुए हैं, तो पाक साफ मुस्लिम और ईसाई संगठन भी नहीं हैं। मुस्लिम और ईसाई संगठन पिछले कई सदियों से भारत में धर्मांतरण का खेल खेल रहे हैं। दलितों, आदिवासियों और समाज के आर्थिक रूप से कमजोर समुदायों को ईसाई संगठन किस तरह आर्थिक मदद के नाम पर, उनकी सेवा के नाम पर और धर्मांतरण के बाद सुखद जीवन का लालच देकर धर्मांतरण कराते चले आ रहे हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, केरल, उत्तर प्रदेश, पंजाब आदि में सक्रिय ईसाई मिशनरियां यही तो कर रही हैं। इसमें कथित रूप से मुस्लिम संगठन भी पीछे नहीं हैं। इस खेल में पिछले चार-पांच दशक से हिंदू सगंठन भी शामिल हो गए हैं। अब तो सत्ता हथियाने, समाज में विक्षोभ पैदा करके सांप्रदायिक धुव्रीकरण की प्रक्रिया को तेज करने का एक हथियार बन गया है धर्मांतरण। समाज को इससे ही बचाना होगा, तभी हम शांति से रहने की अपेक्षा कर सकते हैं।

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