Tuesday, January 20, 2015

बसंत पंचमी को हुई थी शब्द की उत्पत्ति

अशोक मिश्र
नाकारं प्राण नामानं दकारमनलंविंदु
ज्ञात: प्राणाभिसंयोगातेन  नादोअभिधीयते।
प्राण का नाम 'ना' है और अग्नि को 'द' कहते हैं। इसी प्राण और अग्नि के संयोग से जो ध्वनि उत्पन्न होती है, उसे नाद कहते हैं। (पं. श्रीराम शर्मा आचार्य की पुस्तक 'शब्द ब्रह्म नाद ब्रह्म')  संगीत के आचार्यों के अनुसार, आकाशस्थ अग्नि और मरुत् के संयोग से नाद की उत्पत्ति हुई है। यही नाद भारतीय दर्शन की आधारशिला है। नाद को परमब्रह्म माना गया है। आहद और अनहद जीवन के दो मूल तत्व हैं। नाद नहीं, तो जीवन में कुछ नहीं। गीत, संगीत, जीवन के विभिन्न आमोद-प्रमोद, कृत्य-अपकृत्य..सबकी आधार शिला यही नाद है। सं और बसंत पंचमी के दिन इसी नाद का जन्म हुआ था। मनुष्य ने पहली बार नाद यानी आवाज को जिस दिन सुना था, वह दिन माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी थी। बाद में इसे बसंत पंचमी के नाम से भी जाना गया।
माना जाता है कि इसी दिन मनुष्य को शब्दों की शक्ति का ज्ञान हुआ था। संपूर्ण ब्रह्मांड में नाद पैदा करने वाली सबसे पहली देवी हैं सरस्वती। चूंकि माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को उनका जन्म हुआ और उसी दिन उन्होंने नाद की उत्पत्ति की थी, इसलिए भारतीय जीवन में इस दिन की महत्ता बहुत ज्यादा है। यही नाद आगे चलकर ज्ञान का आधार बना। नाद यानी आवाज के बारे में जानने के बाद मनुष्य ने बोलना और लिखना सीखा। सरस्वती देवी की मूर्ति या चित्र में दिखाए गए वीणा, पुस्तक और मयूर तो संगीत, विचार और कला के प्रतीक चिन्ह हैं। यही कारण है कि देवी सरस्वती को साहित्य, संगीत, कला की जननी माना जाता है। सरस्वती की वीणा संगीत की, पुस्तक विचार की और मयूर वाहन कला की अभिव्यक्ति है।
सरस्वती के जन्म के विषय में एक कथा कही जाती है। कहा जाता है कि जब ब्रह्मा ने ब्रह्मांड की रचना के बाद मनुष्य और पशुओं की रचना की, तो यह महसूस किया कि शब्द बिना के इस संपूर्ण सृष्टि का कोई मतलब नहीं है। शब्द यानी नाद के बिना तो कोई भी अपने विचार एक दूसरे तक नहीं पहुंचा पाएगा। शब्दहीनता तो ऐसी सृष्टि के लिए अभिशाप साबित होगा। कहते हैं कि उन्होंने विष्णु से अनुमति लेकर एक चतुर्भुजधारी महिला की उत्पत्ति की। इनके एक हाथ में वीणा, दूसरे हाथ में पुस्तक, तीसरे हाथ में माला और चौथा हाथ वरमुद्रा में था। माला तो हमारे दर्शन में वैराग्य का प्रतीक माना जाता है। वरमुद्रा सभी प्राणियों को अभय प्रदान करती है।
वीणा को झंकृत करने से पैदा हुई गूंज ही वह आदिशब्द माना जाता है जिससे आगे चलकर ज्ञान का विकास हुआ। ज्ञान और विज्ञान के प्रचार-प्रसार का मूलस्रोत सरस्वती के होने की वजह से उनके प्रति आभार व्यक्त करने के लिए प्रत्येक वर्ष माघ महीने के शुक्लपक्ष की पंचमी को वसंतोत्सव मनाया जाता है। बसंत पंचमी को ही सरस्वती के वरद पुत्र महाप्राण सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' का जन्म हुआ था। इस दिन कामदेव की भी पूजा की जाती है। कड़ाके की सर्दियों के चलते सिमटा-सिकुड़ा मनुष्य माघ में प्रखर होते सूर्य के ताप से थोड़ा-थोड़ा खुलने लगता है। प्रकृति भी नवशृंगार करके वातावरण को मादक बनाने लगती है। ऐसे में भला कामदेव अपना प्रभाव छोडऩे में पीछे कैसे रहते?
बसंत पंचमी को लोग अपने-अपने घरों में सरस्वती की प्रतिमा की पूजा करते हैं। इसदिन लोग अपने बच्चे को अक्षर का अभ्यास भी करवाते हैं। कलश स्थापित करने के बाद गणेश जी तथा नवग्रह की विधिवत पूजा के साथ-साथ सरस्वती की पूजा की जाती है। महिलाएं सरस्वती को सिंदूर और शृंगार की अन्य वस्तुएं अर्पित करती हैं। उन्हें श्वेत वस्त्र भी पहनाए जाते हैं।
यह दिन वसंत ऋतु के आरंभ का दिन होता है। इस दिन देवी सरस्वती और ग्रंथों का पूजन किया जाता है। छोटे बालक-बालिका इस दिन से विद्या का आरंभ करते हैं। संगीतकार अपने वाद्ययंत्रों की पूजा करते हैं। स्कूलों और गुरुकुलों में सरस्वती और वेद पूजन किया जाता है। हिन्दू मान्यता के अनुसार वसंत पंचमी को अबूझ मुहूर्त माना जाता है। इस दिन बिना मुहूर्त जाने शुभ और मांगलिक कार्य किए जाते हैं।

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