Saturday, February 28, 2015

यमलोक में होलिकोत्सव की धूम

-अशोक मिश्र
यमलोक में होलिकोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा था। यमराज हाथों में रंग, अबीर-गुलाल आदि लिए स्वर्गलोक से स्पेशल विजिट पर आईं रंभा, मेनका, उर्वशी सहित अन्य अप्सराओं से घिरे होली खेल रहे थे। यमलोक में रहने वाले देव, गंर्धव, अप्सराएं सभी एक दूसरे को रंगने और हंसी-ठिठोली करने में व्यस्त थे। यमलोक की चर्चित डीजे कंपनी स्वर्णमंच पर अपना आइटम सांग पेश कर रही थी। कहने का मतलब सुरा और सुंदरी का अद्भुत संगम यमलोक में देखने को मिल रहा था। बस, यमराज का सदियों पुराना वाहन बेचारा भैंसा एक कोने में खड़ा यह हुड़दंग होते देख रहा था। वह होली खेलता भी, तो किससे..यमलोक में किसी दूसरी भैंस या भैंसे की नियुक्ति हुई ही नहीं थी। तभी मेरी आत्मा को यमदूत ने यमराज के समक्ष पेश किया। माइक्रो गारमेंट पहने देवी रंभा के कपोलों पर मोहक अंदाज में रंग लगाने को बढ़े यमराज मेरी आत्मा को देखते ही ठिठक गए। डीजे की धुन पर थिरक रही अप्सराओं के कदम थम गए। आमोद-प्रमोद में व्यवधान पडऩे से यमराज गुर्राए, 'कौन है यहा गुस्ताख आत्मा? इसे यहां पेश करने की गुस्ताखी किसने की है? जानता नहीं..हम होलिकोत्सव मना रहे हैं।Ó
मेरी आत्मा को मर्त्यलोक  से लाने वाला यमदूत कांपती आवाज में बोला, 'क्षमा देव..क्षमा..यह मर्त्यलोक के एक मामूली व्यंग्यकार की आत्मा है। महाराज..इसका दावा है कि आज इसकी मृत्यु नहीं हुई है। दूसरे की बजाय उसे पकड़कर यहां लाया गया है। रास्ते भर यह मुझसे झगड़ता आया है।Ó 
यमदूत की बात सुनते ही यमराज ने रंभा पर गुलाल फेंका और थाली सामने खड़े सेवक को थमा दी, 'अबे व्यंग्यकार की दुम!...तुम कैसे कह सकते हो कि तुम्हारी आज मौत नहीं हुई है?Ó मैंने (मतलब मेरी आत्मा ने) व्यंग्यात्मक लहजे में कहा, 'जासूसी कराकर... महाराज...जासूसी कराकर। मर्त्यलोक  में ही एक विभाग से दूसरे विभाग, एक कंपनी से दूसरी कंपनी की जासूसी नहीं होती। यमलोक से लेकर स्वर्ग लोक तक, ब्रह्म लोक से लेकर पाताल लोक और क्षीर सागर तक हम पृथ्वीवासियों के पेड एजेंट्स मौजूद हैं। हमारे देश के नेताओं, ब्यूरोक्रेट्स और उद्योगपतियों ने सब जगह अपने टांके फिट कर रखे हैं। मेरा एक दोस्त इनकमटैक्स डिपार्टमेंट में अफसर है। उसका एक लिंक यमलोक में भी है, महाराज! उसी दोस्त की मार्फत मैंने पता लगाया था, अभी मेरी जिंदगी के बाइस साल चार महीने पांच दिन चौदह घंटे बाकी हैं। महाराज...मुझे तो यहां तक मालूम है कि पिछली बार जब आप एक फेमस फिल्मी विलेन के प्राण हरने गए थे, तो उससे सेंटिंग-गेटिंग करके उसके पड़ोसी के प्राण हर लाए थे। बदले में आपके 'यमखातेÓ में सत्ताइस करोड़ डॉलर जमा कराए गए थे।Ó
मेरे मुंह से बात क्या निकली, वहां उपस्थित लोगों में खुसर-पुसर शुरू हो गई। यमराज के परमानेंट वाहन भैंसे के चेहरे पर हवाइयां उडऩे लगीं। होलिकोत्सव में मदहोश हो रहे स्त्री-पुरुष मेरे इर्द-गिर्द घेरा बनाकर खड़े हो गए। यमराज गरजे, 'क्या बकते हो व्यंग्यकार! तुम चुप रहो, वरना रौरव नरक में भिजवा दूंगा।Ó मुझे भी व्यंग्यकार वाला ताव आ गया। मैंने कहा, 'बकता नहीं हूं, महाराज! मैं एक मामूली व्यंग्यकार सही, लेकिन अब तक की जिंदगी में टेढ़ा ही रहा हूं। बात कितनी भी सीधी क्यों न रही हो, मैंने उसे टेढ़े में ही समझा। बस, अपनी घरैतिन के सामने टेढ़े होने की हिम्मत नहीं जुटा पाया क्योंकि वह मुझसे भी ज्यादा टेढ़ी है। अब आपको बताऊं?....आपने यह जो बीस किलो का मुकुट पहन रखा है, उसमें लगा सोना किसके पैसे से आया है?Ó 
तभी मेरी निगाह यमराज के उस सूट पर गई, जिसे पहनकर वे एकदम मोदियाये से लग रहे थे। मेरे चेहरे पर कुटिल मुस्कान दौड़ गई, 'अरे..! यह सूट यहां आ गया? हद हो गई महाराज...आप महाराज यम हैं...आपके नाम से पूरी दुनिया कांपती है। आप जिसके भी सामने खड़े हो जाते हैं, उसकी घिग्घी बंध जाती है और अब आपकी यह हालत हो गई है कि किसी की उतरन पहनें...। उस नीलामी में आप भी थे क्या...या उस बेचारे को जिसने यह सूट खरीदा था, उसे करोड़ों का चूना लगाकर चुरा लाए हैं?Ó 
मैं कुछ कहता कि इससे पहले यमराज चिल्लाए, 'बस..बस..आगे कुछ बोला, तो मुझसे बुरा कुछ नहीं होगा। चुप रह..इस बार होलिकोत्सव यमलोक में ही मना ले..कल तुझे मर्त्यलोक  में पहुंचा दिया जाएगा। गलत आत्मा लाने के जुरमाने के तौर पर तुझे दस साल की जिंदगी और दी जाती है। फिलहाल तो मेरे बाप! तुझे इन अप्सराओं में से जो भी पसंद हो, उसको चुन ले...उसके मौज कर...होली खेल..रंग लगा..रंग लगवा..।Ó यह सुनते ही मैंने उर्वशी का हाथ पकड़ा और पास में रखी थाली में से रंग उठाया और उर्वशी के कोमल गालों पर मलने लगा। तभी यमलोक के हुरिहारे और डीजेवाले गा उठे, 'नकबेसर कागा लै भागा..मोरा सैंया अभागा न जागा..उडि़ कागा मेरे नथुनी पै बैठा..नथुनी कै रस लै भागा..मोरा सैंया..।Ó 
एक तो होली का त्योहार, ऊपर से उर्वशी जैसी अनिंद्य सुंदरी का साहचर्य..मेरे मन की तरह हाथ भी बहकने लगे। तभी मेरी पीठ पर एक दोहत्थड़ पड़ा और मैं मुंह के बल गिर पड़ा। पीछे से घरैतिन की आवाज आई, 'तू..जिंदगी भर छिछोरा रहा...पड़ोसिनों से लेकर मेरी बहनों-सहेलियों को लाइन मारता रहा। मरने पर भी तेरा छिछोरापन गया नहीं..तू क्या समझता है, मरने के बाद तुझे मौज-मस्ती करने की छूट मिल गई?...अरे मेरा-तेरा बंधन सात जन्मों का है। अभी तो यह पहले जन्म का ही बंधन छूटा है। छह जन्म तो बाकी हैं।Ó इतना कहकर घरैतिन ने यमराज का गदा उठाकर मुझे निशाना बनाकर फेंका। गदे के वार से बचने की कोशिश में मैंने सिर झटक दिया। पर यह क्या...यमलोक में यह दीवार कहां से आ गई। मेरा सिर दीवार से कैसे टकरा गया। ओह..अब समझा..आप समझे कि नहीं..सपने में गदे के वार से बचने के लिए जो सिर झटका था, वह दीवार से टकराया था। सिर पर बन आए गूमड़ को सहलाता हुआ मैं उठ बैठा। तभी मुट्ठी भर रंग मेरे बालों और गालों पर लगाती हुई घरैतिन ने कहा, 'होली मुबारक हो।Ó और मैं अपनी मर्त्यलोक  वाली ऊर्वशी से होली खेलने लगा।

1 comment:

  1. This comment has been removed by a blog administrator.

    ReplyDelete