Monday, June 15, 2015

मानवीयता के आधार पर मदद

अशोक मिश्र
आदरणीय प्रधानमंत्री जी, नमस्कार। वैसे मेरा नाम गुनहगार है। पेश से मैं एक पाकेटमार हूं। जब से होश संभाला है, हाथों की अंगुलियों में फंसा ब्लेड और फूटी किस्मत मेरे हर संकट में साथी रहे हैं। लोग मुझे बड़े आदर और सम्मान के साथ उस्ताद गुनहगार कहते हैं। इस देश के हर गली-मोहल्ले में मेरे पट्टशिष्य अपनी रोजी-रोटी कमा-खा कर इस देश के विकास में अपनी महती भूमिका अदा कर रहे हैं। कुछ तो इतना उन्नति कर गए हैं कि वे संसद और विधानसभाओं की शोभा बढ़ा रहे हैं। अब अपने मुंह मियां मि_ु क्या बनूं, प्रधानमंत्री जी। जब से आपने छप्पन इंच वाला जुमला दिया है, तब से मैं भी अपना छप्पन इंची सीना फुलाकर यह कहने लगा हूं कि मेरे शिष्यों ने ऐसे-ऐसे कारनामों को अंजाम दिया है कि लोग-बाग दांतों तले अंगुली दबा लेते हैं। मेरे एक शिष्य ने तो इंगलैंड से आए अंग्रेज को बीस करोड़ में आगरे का ताजमहल तक बेच दिया था। वह तो उस बेचारे की किस्मत फूटी थी कि पैसा मिलने से पहले ही पुलिस ने उसे पाकेटमारी के एक मामले में धर लिया और उसे वह रात हवालात में गुजारनी पड़ी।
प्रधानमंत्री जी, आपको  यह पत्र लिखने की जरूरत इसलिए आ पड़ी क्योंकि आज मुझे चार राज्यों की पुलिस खोज रही है। मुझे मानवीयता के आधार पर किसी की मदद करने का यह शिला मिलेगा, मैंने ऐसा सोचा नहीं था। बात दरअसल यह है कि कुछ दिन पहले मैंने एक चोर की भागने में मदद की थी। वह पुलिस से बचकर भाग रहा था, तभी मैं उससे टकरा गया। उसने गिड़गिड़ाते हुए मुझसे कहा, 'उस्ताद! मुझे बचा लो..पुलिस मेरे पीछे पड़ी है। यदि इस बार पकड़ा गया, तो सीधे इनकाउंटर ही हो जाएगा। मेरे बीवी-बच्चे अनाथ हो जाएंगे। यदि मैं इनकाउंटर में मारा गया, तो मेरी खूबसूरत बीवी को मेरे प्रतिद्वंद्वी किसी भी हालत में नहीं छोड़ेंगे।Ó सर..मुझे उसकी करुणगाथा और दशा देखकर दया आ गई। मैंने मानवीयता के आधार पर उसकी मदद कर दी। आपको शायद नहीं मालूम होगा कि मैं दयालु बहुत हूं। मुझे किसी का रोना-धोना नहीं देखा जाता है। बस..उसके रोने-धोने और इंसानियत की दुहाई देने पर मैं फंस गया। वह तो बाद में पता चला कि वह नामुराद सिर्फ चोर ही नहीं, बहुत बड़ा ठग भी था। कई राज्यों की पुलिस उसे तलाश रही है। उसने हजारों लोगों का पैसा मार दिया था। अब आपसे क्या बताऊं! जिंदगी में अपनी इसी मानवीयता के चक्कर में कई बार फंस चुका हूं। इसके चक्कर में पिटते-पिटते बचा हूं। सर जी..आप तो जानते हैं यह देश सबको समभाव से देखने और मानने की शिक्षा देता है। साधु और डाकू के हृदय में जब परमात्मा समभाव से निवास कर सकते हैं, तो उनमें विभेद करने वाला मैं कौन होता हूं। बस, शायद यही समझना मेरी भूल बन गई। पुलिस मेरे पीछे है और मैं अपनी फूटी किस्मत लिए आगे-आगे भाग रहा हूं। सर जी..अब आप ही मुझे इस संकट से उबार सकते हैं। आपका ही-गुनहगार

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