Wednesday, October 28, 2015

पिता तुल्य है मेरा बेटा!

अशोक मिश्र
गांव के रिश्ते से मुसई तो वैसे भाई लगते हैं, लेकिन हैं दोस्त की तरह। उनके मुंह से बयान तो ऐसे निकलते हैं, मानो फुलझडिय़ां छूट रही हों। गांव-जवार की कोई भी बात पता चली नहीं कि खट से एक बयान हाजिर, एकदम भगवा ब्रांड की तरह। बयान भी ऐसे कि सुनने वाले की कनपटी लाल हो जाए। पहले तो सुनकर कान में काफी देर 'सांय..सांय' की आवाज घूमती रहे, फिर वह दिमाग वाया दिल तक होकर पहुंचे, तो दिमाग का दही हो जाए। मुसई भाई बोलते समय न आगा देखते हैं, न पीछा। जो मुंह में आया तुरंत बाहर। किसी मल्टीनेशनल कंपनी के प्रोडक्ट के विज्ञापनों की तर्ज पर 'इधर ऑर्डर करो, उधर कंपनी का सेल्समैन प्रोडक्ट हाथ में लिए कालबेल बजा रहा होगा। तुरंत की तुरंत डिलीवरी।' उनके बयान से किसी को अच्छा लगेगा या बुरा, उनकी बला से। कोई कुढ़ता है, तो कुढ़ता रहे। वे तो मस्त हाथी की तरह डायलाग डिलिवरी में सतत लगे रहते हैं। 
लोग तो कहते हैं कि अगर मुसई भाई राजनीति में होते, तो बड़े-बड़े नेताओं के कान काटते। आज जो देश की राजनीति में बड़े तुर्रम खां बने घूमते हैं, वे उनके आगे पानी भरते। नेता चाहे जातिवादी हो, धर्मवादी हों, अधर्मवादी हों, दक्षिणपंथी हों, वामपंथी हों, सेक्युलरवादी हों, असेक्युलरवादी हों, लेकिन उनके घाघवाद के सामने सब बेकार। घाघ इतने कि आपकी आंखों से काजल चुरा लें और आपको भनक तक नहीं लगे। वे चुनावी राजनीति में कितना सफल होते, यह तो नहीं कहा जा सकता है, लेकिन जितने वोट बटोरू नेता हैं, उनका तंबू उखाड़ देने की काबिलियत जरूर मुसई में है। वे अच्छे से अच्छे नेताओं को टके के भाव बेच देने की काबिलियत रखते हैं। लेकिन एक छोटे से गांव में राजनीति की कितनी गुंजाइश हो सकती है। सो, मुसई भाई टैलेंटेड होते हुए भी सबके निशाने पर हैं। उनके बयानवीर होने का सबसे ज्यादा खामियाजा भुगतना पड़ता है, उनके बेटे बलभद्र को। बेचारा हर समय आशंकित रहता है कि पता नहीं, कब और कहां से उलाहना आ आए। अगर दो-चार लोग उसके घर की ओर आते दिखते हैं, तो वह दहल जाता है कि पता नहीं आज कौन-सा बयान उसके पिता ने जारी कर दिया है। वैसे मुसई भाई को पल्टासन भी बहुत अच्छी तरह से आता है। बयान देने की कला में वे जितने सिद्धहस्त हैं, उतने ही माहिर वे बयान देने के बाद मुकर जाने में भी हैं। हजार क्या लाखों लोग कहते रहें कि आपने मेरे सामने यह बात कही थी, लेकिन वे नहीं मानेंगे, तो नहीं मानेंगे। कर लो उनका जो भी कर सकते हो।
अभी पिछले दिनों की बात है। नथईपुरवा गांव के एक आदमी की बेटी रात में रामलीला देखने गई, तो सुबह तक घर नहीं आई। मुसई के संज्ञान में जैसे ही मामला आया, तुरंत बयान जारी कर दिया, 'भाग गई होगी किसी के साथ।' मुसई का इतना कहना था कि घरों से लाठियां निकल पड़ीं। मच गया गांव में गदर। मुसई के सुपुत्र बलभद्र ने उग्र लोगों के सामने हाथ जोड़े, पांव पकड़े। तब जाकर किसी तरह मामला शांत हुआ। बाद में पता चला कि रामलीला देखने गई लड़की बगल के गांव में ब्याही बुआ के घर सोने चली गई थी। बलभद्र अपने पिता की बांह पकड़कर खींचता हुआ घर लाया और काफी थुक्का-फजीहत की। बस हाथ नहीं उठाया, बाकी जितना वह 'हत्तेरी की, धत्तेरे की' कर सकता था, उसने किया। समझाया-बुझाया, हाथ-पैर जोड़े। गांव-जवार और घर-परिवार की दुहाई दी। थोड़ी देर बाद जब वह घर से बाहर निकले, तो पहले की ही तरह चौचक। बेटे का सारा समझाना-बुझाना, डांटना-डपटना, सब धूल की तरह झाड़ कर पहले की तरह बिंदास लग रहे थे। लोगों ने हंसते हुए पूछ लिया, 'क्यों मुसई भाई, बचवा ने तो खूब हत्तेरे-धत्तेरे की होगी?' मुसई ने रोष भरे स्वर में कहा, 'पिता तुल्य है मेरा बेटा! वह जो कुछ कहेगा, मुझे मानना होगा। तुम लोग कौन होते हो, बीच में टांग अड़ाने वाले।' इतना कहकर वे खेतों की ओर निकल गए।

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