Thursday, October 8, 2015

मुंगेरी लाल के पांव में बंधी बिलार

अशोक मिश्र
बचपन में जब मैं दिन भर घूमने के बाद शाम को घर आता था, तो मेरी मां कहती थीं कि इसके पैर में बिलार (बिल्ली) बंधी है। घर में पैर रुकता ही नहीं है। तब मैं उनकी इस कहावत का ठीक-ठीक अर्थ नहीं जानता था। मगर अब अपने पड़ोसी मुसद्दीलाल के सुपुत्र मुंगेरी लाल की घुमक्कड़ प्रवृत्ति को देखकर बता सकता हूं कि पैर में बिलार बांधने का क्या मतलब होता है। मुसद्दी लाल अपने जीवन में जिले से बाहर कभी नहीं गए। एक बार उनका कोई रिश्तेदार मार-पीट के मामले में थाने में बंद हो गया था, तो उसकी जमानत देने जरूर वे जिला मुख्यालय तक गए थे। उन्होंने पूरी जिंदगी काट दी, लेकिन मजाल है कि वे अपने गांव-जवार के बाहर गए हों। एक उनके सुपुत्र मुंगेरी लाल हैं। घर में पांव रुकते ही नहीं हैं। कभी अपनी ननिहाल, तो कभी चाची, मामी, भाभी के मायके में ही नजर आते हैं। इन सबसे ऊब गए, तो चल दिया अपनी और गांव के रिश्ते बुआ, मौसी, बहन और बेटियों की ससुराल। अपने घर में चुपचाप रहने वाला मुंगेरी लाल रिश्तेदारियों में पहुंचते ही मुखर हो उठता है।
अभी हाल का ही वाकया है। चाची के मायके में पहुंचने पर हुई खातिरदारी से मुग्ध मुंगेरी लाल ने जब अगले दिन चाची के भतीजे-भतीजियों को चाय और बिस्कुट खाते देखा, तो उसके मुंह से बेसाख्ता निकल पड़ा,  'अरे! तुम लोग चाय में बिस्कुट भिगोकर खा रहे हो, मेरे यहां ऐसा हुआ होता, तो बवाल मच जाता। मेरे पिता जी पीट-पीटकर भुरकुस निकाल देते।' यह उसकी आदत में है। अपने घर की बुराई और दूसरों की बड़ाई करने में उसे एक अजीब सा आनंद आता है। वह अक्सर अपनी रिश्तेदारों से कहा करता है, 'अरे मौसी! आपने झाड़ू दरवाजे के पीछे खड़ा करके रखा है, हम लोग ऐसा करते, तो मेरी मां झाडू से पीटती। बुआ! शत्रुघ्न खड़ा होकर पानी पी रहा है, अगर मैं कही ऐसा करता हुआ पकड़ा जाऊं, तो समझो कयामत ही आ जाएगी।' कहने का मतलब यह है कि उसे अपने घर की हर बात, हर काम में खोट ही नजर आता है। दूसरों का कोई भी काम हो, उसे प्रशंसनीय लगता है। वह खुले आम कहता भी है, आप लोग ऐसा कर रहे हैं, मेरे यहां ऐसा होता, तो वैसा हो जाता। घर के लोग आसमान सिर पर उठा लेते, कयामत आ जाती, प्रलय तो समझो आई ही आई थी।
कहने के मतलब यह है कि वह नाते-रिश्तेदारियों में अपने ही घर की पोल खोलता रहता है। लोग उसकी बातें सुनकर मंद-मंद मुस्कुराते हैं। कुछ लोग तो जान-बूझकर उसे उकसाते हैं कि वह कुछ बोले। मुंगेरी लाल अपने मां-बाप, भाई, बहन, भाभी आदि से सीधे मुंह बात नहीं करता है। लेकिन अगर किसी रिश्तेदारी में पहुंच गया, तो सबसे पहले उस घर के बड़े-बुजुर्ग के लपककर चरण स्पर्श करता है, उन्हें भाव विभोर होकर गले से लगा लेता है। अगर कोई उस समय फोटो-शोटो खींच रहा हो और कोई दूसरा फोटो के शानदार एंगल में बाधा बन रहा हो, तो वह बड़ी बेमुरौव्वती से उस आदमी को पकड़कर किनारे भी कर देता है। लंतरानी हांकना, तो मुंगेेरी लाल जैसे मां के पेट से सीखकर आया है, अभिमन्यु की तरह। बात-बात पर रिश्तेदारों से कहता है, 'मौसा जी! साठ साल के हो गए मेरे पिता को पैदा हुए, लेकिन कुछ भी नहीं किया। आज आप जो मेरे घर को चमकता-दमकता देख रहे हैं, वह सारी शाइनिंग मेरी वजह से है। मैंने किया है वह सब कुछ। मेरी मां, बाप, भाई-बहन तो बस गोबर जैसे हैं। जितना खा सके, खाया। बच गया तो टोला-पड़ोसियों को बांट दिया। मैंने अपने 'स्किल' से घर को 'स्टार्टअप' करके 'स्टैंडअप' किया है। मेरे परिवारवालों ने तो अपने ही घर को मोहल्ले-टोले वालों की मदद से लूट खाया।'
मुंगेरी कल ही भाई की ससुराल से लौटा, तो बड़ा खुश था। सुबह-सुबह भेंट हो गई, तो मैंने पूछ लिया, 'और मुंगेरी..क्या हालचाल है?' मुंगेरी ने कहा, 'क्या बताएं चच्चा..अपने घर के लोग हैं न! एकदम बौड़म। भाई की ससुराल में जाकर देखो..क्या सलीके से रहते हैं। दिल खुश हो जाता है। यही बात अगर यहां कह दू, तो लोग मुंह नोचने को तैयार हो जाते हैं।' इतना कहकर मुंगेरी ने बाइक स्टार्ट की रफूचक्कर हो गया।

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