Thursday, November 26, 2015

गले पड़ गए गुनाहगार

अशोक मिश्र
केजरीवाल जी ने लाख टके की बात कही है। अब अगर कोई गले पड़ ही जाए, तो क्या किया जा सकता है। अब इसे विरोधी कुछ और समझते हैं, तो समझते रहें। सच बताऊं, मैं तो केजरीवाल जी की बात से सौ फीसदी नहीं, चार सौ बीस फीसदी सहमत हूं। अब कल का ही वाकया सुनाऊं। घरैतिन ने पांच सौ रुपल्ली थमाकर हजार रुपये का इस्टीमेट थमाकर कटरा बाजार भेज दिया। 
कटरा बाजार की सब्जी मंडी में मिल गए उस्ताद गुनाहगार। वे खरीद तो रहे थे आलू, लेकिन पता नहीं किसको चकर-मकर देखते जा रहे थे। तभी उनकी निगाह मुझ पर पड़ गई। मैंने भी संयोग से उन्हें देख लिया, तो चुपके से खिसक लेने की सोची। अपनी सोच को क्रियान्वित कर पाता कि उससे पहले वे लपके और मुझे गले लगा लिया। मैं भौंचक किसी मोम के पुतले की तरह उनके गले लगा रहा। आसपास सब्जी खरीदने वाले लोग और दुकानदार मुझे इस तरह देखने लगे, मानो बिहार के शपथ ग्रहण समारोह में दो विपरीत ध्रुव गले मिल रहे हों। 
अब आप बताइए, इसमें मेरी क्या गलती थी। यह मैं जानता हूं कि उस्ताद गुनाहगार एक निहायत शरीफ, रहम दिल और अपने पेशे के प्रति समर्पित पाकेटमार हैं। उनका दावा है कि उन्होंने कभी किसी महिला, बच्चे और गरीब की पाकेट नहीं मारी है। उनका दावा है कि यदि अंगुलियों में फंसी ब्लेड सलामत रहे, तो वे किसी की भी पाकेट मार सकते हैं। वैसे उनकी सबसे बड़ी ख्वाहिश प्रधानमंत्री जी का बटुआ मार कर बाद में उन्हें गिफ्ट करने का है। ऐसा करके वे अपनी प्रतिभा और कला से प्रधानमंत्री जी को प्रभावित करना चाहते हैं। शायद इसी बहाने 'मेक इन इंडिया' में उनके लिए कोई रोजगार मुहैय्या हो जाए।
जब से उस्ताद गुनाहगार मेरे गले पड़े हैं, लोग मुझे अविश्वास की नजर से देखने लगे हैं। सुबह ही पड़ोस में रहने वाले मेरे धुर विरोधी वर्मा जी मुझे सुनाते हुए अपनी पत्नी से कह रहे थे, सुनती हो! अब यह मोहल्ला शरीफों के रहने लायक नहीं रहा। अब तो ठग, उठाईगीर, पाकेटमार ही रहेंगे यहां। मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि लोगों को कैसे समझाऊं? और लोग हैं कि समझने को तैयार ही नहीं हैं। http://epaper.amarujala.com/ac/20151127/08

No comments:

Post a Comment