Tuesday, December 8, 2015

कहां नहीं है असहिष्णुता?

-अशोक मिश्र
इंटरमीडिएट की राजनीति शास्त्र की परीक्षा में पूछा गया था, असहिष्णुता क्या है, उदाहरण सहित विस्तार से समझाओ। बकलोल चंद इंटर कालेज के एक परीक्षार्थी ने लिखा-असहिष्णुता इस संपूर्ण चराचर जगत में व्याप्त है। एक क्या हजारों उदाहरण दिए जा सकते हैं। अगर हम धार्मिक आधार पर देखें, तो मानव जीवन की उत्पत्ति ही असहिष्णुता का परिणाम है, वरना स्वर्ग लोक की हजारों, लाखों अप्सराओं, हूरों को छोड़कर इस पृथ्वी पर कौन आना चाहता है। अब मैं अपना ही उदाहरण दूं। मैं जब बच्चा था, घुटनों के बल चलता था, मिट्टी खाना चाहता था, पानी में छपछपैया खेलना चाहता था। लेकिन हमारे मां-बाप, भाई-बहन, दादा-दादी असहिष्णु और मैं सहिष्णु था। वे मेरे हाथ में जैसे ही मिट्टी देखते थे, छीन कर फेंक देते थे। यही असहिष्णुता है, इंटॉलरेंस है। थोड़ा बड़ा हुआ, कंचे खेलने में मजा आता था, पतंग उड़ाने को जी करता था। गिल्ली-डंडा उन दिनों सबसे बढिय़ा खेल था, लेकिन असहिष्णु मां-बाप थे कि नहीं, खेलना नहीं है। पढ़ो 'अ' से अनार। खाक 'अ' से अनार।
स्कूलों में मास्टर तो सबसे बड़े वाले असहिष्णु हैं। मन तो खेल के मैदान में रमा हुआ है और रटा रहे हैं हिस्ट्री, ज्याग्रफी और मैथमेटिक्स के उबाऊ सूत्र। मेरा वश चले, तो इस दुनिया के सभी अध्यापकों, माताओं-पिताओं, भाइयों-बहनों, दादा-दादियों और पड़ोसियों को एक निर्जन द्वीप पर ले जाकर छोड़ दूं और कहूं कि लो..यहीं बैठकर अपने हुकुम डुलाओ पेड़, पौधों, हवा-पानी पर। थोड़ा बड़ा हुआ..मतलब जवान हुआ। लड़कियों से बातें करना, उनके आगे-पीछे घूमना, उनके नाज-नखरे उठाने का मन करता है, लेकिन सारी दुनिया मुझे असहिष्णु लगती है। घर वाले और बाहर वालों का वश चले, तो मेरा इस देश में रहना मुहाल कर दें। अभी तो यह हाल है, कल को मेरी शादी होगी। तब तो मेरे सामने असहिष्णुता का महासागर लहराएगा। तनिक भी मुंडी इधर-उधर डोली कि शुरू हो गई जंग। तुमने उसे क्यों देखा, इधर-उधर क्या देख रहे हो। शाम को किससे बतिया रहे थे। मतलब कि मैं पति न हुआ, गुलाम हो गया। इसके बाद उत्तर पुस्तिका में कुछ नहीं लिखा हुआ था। लगता है कि कुछ लिखने का समय नहीं बचा था और पुस्तिका छीन ली गई थी।

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