Sunday, February 12, 2017

बनन में बागन में झुट्ठौ न बगरयो बसंत है

अशोक मिश्र
अब तो पता ही नहीं चलता कि कब मुआ वसंत आया और चला गया। दरवाजे पर, खेतों में, बागों में, गली-कूचों में न कहीं वसंत की आहट सुनाई देती है, न पदचिह्न। ईमेल के जमाने में मुआ चिट्ठी पत्री हो गया, अगोरते रहो साल भर। आता भी है, तो ह्वाट्स ऐप, लैपटॉप, फेसबुक, ट्विटर पर किसी पोस्ट के आने पर जिस तरह मोबाइल पर एलार्म रिंग बजती है, उसी तरह रस्म अदायगी के तौर पर वसंत पंचमी के दिन पीले कपड़े पहने, पीले फूल हाथों में लिए ‘वर दे वीणावादिनि वर दे..’ गाते बच्चे-बच्चियों को देखकर पता चलता है कि वसंत आ गया है। हालांकि दिन-रात आंखें गड़ाने की वजह से मिचमिची आंखों और फॉस्टफूड खाने से पियराये इन बच्चे-बच्चियों के चेहरों पर थोड़ी मस्ती, थोड़ी शरारत के भाव नदारद ही रहते हैं। ऐसे में कैसे समझा जाए कि वसंत या तो कहीं आसपास है या आ चुका है। अब तो वसंत के आने पर जी में वह फुरफुरी ही नहीं उठती, जो कुछ दशक पहले तक दूर से ही किसी नवयौवना या नवयुवक को देखते ही युवा लड़के-लड़कियों के मन में उठती थी। चेहरा एकदम पलास हो जाता था। आंखें हजार सूरज की रोशनी लिए चमकने लगती थीं। नख लेकर शिख तक मद छा जाता था। बसंत और फाल्गुन में तो बूढ़ी भौजाइयां, बूढ़े बाबा तक मदांध होने लगते थे। आम के साथ-साथ लोग बौराने लगते थे। अंतरतम में कहीं गहरे छिपी बैठी साल भर की दमित इच्छाएं और वासनाएं जैसे अंगड़ाइयां लेने लगती थीं। मन से हुलास-उल्लास तो जैसे बिला गए हैं। न तो नौजवानों में कहीं वसंत दिखता है, न प्रौढ़ों और बुजुर्गों में। कई बार तो लगता है, महाकवि पद्माकर झुट्ठै लिख गए हैं कि बीथिन में ब्रज में नवेलिन में बेलिन में बनन में बागन में बगरयो बसंत है। अब वसंत आता भी है, तो दबे पांव। आता है, तो उसके आने पर थोड़ी बहुत रस्म अदायगी होती है और चुपचाप विदा हो जाता है, जैसे कुघड़ी में आया हुआ मेहमान। मेहमान के आने पर अब जिस तरह किसी को खुशी नहीं होती है, वैसे ही प्रकति और मानव से निरादरित वसंत अपने प्राचीन गौरव को याद करता हुआ थके पथिक की तरह चला जा रहा होगा। प्राचीन वसंतकालीन विरहिणी नायिका की तरह बिसूरता होगा अरण्य में बैठकर। हां, अब वैलेंटाइन्स डे आता है, पूरे गाजे-बाजे के साथ। बाजार के चक्कर में वसंत मात खा गया। वैलेंनटाइन्स डे के साथ बाजार है, क्रेता हैं, विक्रेता हैं, उन्मुक्तता है, विलासिता है, मादकता है। वसंत के नाम पर मुरझाए हुए चेहरों को वैलेंटाइन्स डे के नाम पर किस तरह चहकना है, यह बाजार ने सिखा दिया है। वैलेंटाइन्स डे ने प्रतिबद्धता तो जैसे खत्म ही कर दी है। इसको प्रपोज करो, उसको किस करो, फलां को टेडी बियर दो और वैलेंटाइन्स डे किसी और के साथ मनाओ। अगले साल वैलेंटाइन्स डे पर किसी दूसरे, तीसरे, चौथे को वैलेंटाइन चुनने की अबाध स्वतंत्रता है।

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