Tuesday, May 9, 2017

‘लालबत्ती’ ने ‘हूटर’ को दिया जन्म


अशोक मिश्र
जब देश आजाद हुआ और पहली सरकार बनी, तब सबसे विकट समस्या यह थी कि इस मुई ‘लालबत्ती’ का क्या किया जाए? ‘लालबत्ती’ का जन्म तो अंग्रेजों के समय में ही हो गया था, लेकिन तब उसके आशिक सिर्फ अंग्रेज ही हुआ करते थे। हां, भारतीय लोग बस दूर से ही ‘लालबत्ती’ के नित्य निखरते सौंदर्य को देखकर ललचाते और हाथ मलकर रह जाते। आजादी के बाद जैसे-जैसे ‘लालबत्ती’ का रूप-यौवन दिन दूना रात चौगुना बढ़ता जा रहा था, उसके आशिकों की तादात भी बढ़ती जा रही थी। ‘लालबत्ती’ के आशिक कहीं गृहयुद्ध पर आमादा न हो जाएं, यही सोचकर ‘लालबत्ती’ का विवाह इस शर्त के साथ राजनीति से करा दिया गया कि जब तक सत्ता सुंदरी तुम पर मेहरबान है, तभी तक तुम इस ‘लालबत्ती’ का मनचाहा उपभोग करने के अधिकारी हो। खबरदार, तुम इसके आजीवन उपभोग की उम्मीद कतई न करना और न ही कभी ‘लालबत्ती’ उम्मीद से होने पाए।
लेकिन शायद यह नियति को मंजूर नहीं था या ‘लालबत्ती’ के किसी आशिक की करतूत कि राजनीति और ‘लालबत्ती’ के वैवाहिक जीवन के 67 साल बाद ‘लालबत्ती’ उम्मीद से हो गई। ‘लालबत्ती’ के उम्मीद से होने की खबर फैलते ही आशिकों के दिल बैठ गए। कुछ आशिक तो गश खाकर पड़े। होश आया, तो लगा छाती पीटने। सदमाग्रस्त आशिक लगे अवांट-बंवाट बकने। कुछ के मुंह से बकते-बकते झाग भी निकलने लगा। ‘लालबत्ती’ के कुछ चतुर आशिकों ने अपने थोबड़े का भूगोल सुधारा। मुंह पर ठंडे पानी का छींटा मारा, क्रीम-पॉवडर लीपने-पोतने के बाद चार बार बचे-खुचे बालों पर कंघी फेरा और टीवी चैनल्स पर चलने वाली डिबेट्स में भाग लेने आ गए, ‘अच्छा हुआ, ‘लालबत्ती’ से पीछा छूटा। 67 साल की बुढ़िया से मोहभंग होने लगा था। अब कम से कम बिना किसी मोहग्रस्तता के जनसेवा तो कर सकूंगा। ‘लालबत्ती’ के चलते में गरीब, असहाय जनता की सेवा से वंचित था। अच्छा हुआ, मुई ‘लालबत्ती’ से पिंड छूटा।’
‘लालबत्ती’ की काफी गहन जांच पड़ताल के बाद प्रधान दाई ने घोषणा की कि ‘लालबत्ती’ पूरे दिन से है, एक मई तक कुछ हो सकता है। उन्होंने यह संभावना व्यक्त की कि ‘लालबत्ती’ की गर्भकाल में यदि ठीक-ठाक देखभाल की जाए, तो यह स्वस्थ ‘ईपीआई’ कल्चर को जन्म दे सकती है। पूरा देश दिल थामकर ‘लालबत्ती’ के प्रसव का इंतजार करने लगा।
आखिर एक मई का वह बहुप्रतीक्षित दिन आ पहुंचा। पूरे देश की निगाह ‘लालबत्ती’ पर लगी हुई थी। सभी ‘ईपीआई’ का जन्मोत्सव मनाने की तैयारी में जुट गए। कुछ तो बाकायदा गोला-बारूद से लैस हो गए। समय पर ‘लालबत्ती’ के प्रसव पीड़ा शुरू हुई। उसे अस्पताल लाया गया। पूरे चौबीस घंटे की मेहनत के बाद लेबर रूम से डॉक्टर निकली और उदास स्वर में घोषणा की, ‘लालबत्ती’ ने सीजेरियन ऑपरेशन से ‘हूटर’ को जन्म दिया है।’ यह सुनते ही लालबत्ती के आशिकों के चेहरे खिल उठे। वह समझ गए कि लालबत्ती भले ही बेवफा हो गई हो, लेकिन अब हूटर का उपयोग करके भौकाल कायम रखा जा सकता है। ‘लालबत्ती’ नहीं, न सही। हूटर तो है कम से कम भौकाल टाइट रखने को।

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