Wednesday, November 8, 2017

दो भाइयों का निर्मल और निस्वार्थ प्रेम

बचपन की कुछ यादें-3

छोटे पंडित से बप्पा के डरने की एक मजेदार घटना भइया ने बताई थी। भइया के अनुसारएक दिन लगभग दस बजे बिट्टा बुआ आंगन में खड़ी जोर-जोर से चिल्ला रही थीं-बप्पा....ओ बप्पा...।’ और बप्पा गाय-बैलों की चारा-पानी करते-करते नदारद थे। उधर बिट्टा बुआ हर पांच-सात मिनट बाद बप्पा....ओ बप्पा...’ की गुहार लगाती और अपने काम में व्यस्त हो जाती थीं। यह प्रक्रिया जब चार पांच बार दोहराई गईतो दुआरे पर बैठे बाबा ने बिट्टा बुआ को डपटते हुए कहा, ‘काहे चोकरति हौतोहार बप्पा भुसैलवा मा सांड निहाइत फुंफुआत है।’ (चिल्ला क्यों रही होतुम्हारे बप्पा भुसैले में सांड की तरह फुंफकार रहे हैं।)  बिट्टा बुआ चुप..। सचमुच दस मिनट बाद बप्पा पसीने से लथपथ सिर पर खैंची भर भूसा लिए भुसैले से निकले और गाय-बैलों को खिलाने लगे। बाबा ने बिट्टा बुआ को आवाज देते हुए कहा-फुंफुआय कै निकरि आए तोहार बप्पा... आरती वारती उतारि लेव।
बप्पा को पहलवानी का बड़ा शौक था। जब बाबा बलरामपुर में रहते थेतो गांव में बप्पा निर्द्वंद्व हो जाते थे। जो मन में आता करते थे। दरवाजे पर ही उठक-बैठकडंड बैठक लगाते। लेकिन जिस दिन स्कूलों में छुट्टी होतीतो बाबा गांव आ जाते थे। उस दिन मानो पूरे गांव में कर्फ्यू लग जाता। बाबा के गांव की चौहद्दी में घुसते ही गांव में हल्ला हो जाता-छोटे पंडित आ गए...छोटे पंडित आ गए। उन्हें छोटे पंडित इसलिए कहा जाता था कि वे लंबाई में छोटे थे। पांच फुट कुछ इंच की ऊंचाई थी। वहीं बप्पा को नौ या दस नंबर का जूता लगता था। बाबा गांव में होतेतो बप्पा की डंड बैठक पर विराम लग जाता या फिर भुसैला ही डंड बैठक का गुप्त स्थल हो जाता था। बल भी बहुत था। जब किसी को अपने घर पर छप्पर चढ़वाना होता थातो वह बप्पा को बुलाने जरूर आता था। तब किसी का छप्पर चढ़वानादलदल में फंसी लढ़िया (बैलगाड़ी) निकालनाबोझ उठवाना आदि बड़ा पुण्य का काम समझा जाता था। लोग अपने काम का हर्जा करके भी ये काम करने जाते थे क्योंकि यदि लोग ऐसा नहीं करतेतो जब उनका छप्पर चढ़वाना होतातो कौन आताये काम सामूहिक ही होते थे। बीस-बाइस हाथ का फरका (छप्पर) होतातो बप्पा लोगों से दस हाथ फरका छोड़कर कंधा लगाने को कहते थे। इस बात की गवाही देने वाले लोग आज भी नथईपुरवा गांव में हैं। खैर...।
इसके बावजूद दोनों भाइयों में अतिशय प्रेम था। दोनों के कार्यक्षेत्र बंटे थे। छोटे पंडित सबकी सुख-सुविधाओं का ख्याल रखते थे। घर में किसके लिए कपड़ा लाना हैकिसके लिए गहना-गुरिया खरीदना हैसाबुन-तेल से लेकर बाहर का हर काम छोटे पंडित के जिम्मे रहता था। बप्पा को इससे कोई मतलब नहीं था। छोटे पंडित ने अपनी छोटी बहन का विवाह तय कर दियाबन्नवत (बरीक्षा) के समय बप्पा को बताया गया और दोनों भाई बन्नवत कर आए। बप्पा की पांच बेटियों यानी हमारी बड़की बुआ (फूल कुंवरि)सावी बुआ (सावित्री)बिट्टा बुआ (पावित्री)धना बुआ और नान्हि बुआ का विवाह छोटे पंडित ने जहां तय कर दियाबप्पा ने उज्र तक नहीं किया। अपने बेटों रामेश्वर दत्तकामेश्वर नाथबालेश्वर प्रसाद और बेटी कमला का विवाह भी छोटे पंडित ने ही जहां उचित समझा तय किया और बप्पा ने कुछ पूछने की जरूरत नहीं समझी। वरना आज हालात यह है कि छोटा भाई अपनी बेटी का बन्नवत (बरीक्षा) बलरामपुर से सपरिवार जाकर लखनऊ में कर आता है और लखनऊ में ही रहने वाले बड़े भाई को बन्नवत की भनक तक नहीं लगने देता। दो भाइयों के निर्मल और निस्वार्थ प्रेम की कथा का इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है कि दोनों भाइयों में संपत्ति के बंटवारे या संपत्ति पर हक को लेकर कभी कोई विचार आजीवन पैदा नहीं हुआ। भतीजी-बुआ यानी जिठानी-देवरानी में भी जीवन भर कभी मनमुटाव तक नहीं हुआ। जिठानी के पद पर आसीन भतीजी ने जो फैसला कर लियाबुआ यानी देवरानी ने सिर झुकाकर मान लिया। छोटे पंडित के एक पुत्र और थे हरीश्वर प्रसाद जिनकी पंद्रह-सोलह साल की उम्र में ही चेचक से मृत्यु हो गई थी। हांकिस खेत में क्या बोना हैकितना अनाज रखकर बाकी बेच देना हैयह सब कुछ छोटे पंडित ने आजीवन नहीं पूछा। खेती का मामला बप्पा के जिम्मे और बाकी सारे काम छोटे पंडित की जिम्मेदारी। घर में भी बच्चों को तेल-बुकवा लगाने से लेकर बड़े होने तक जब तक जिंदा रहींहमारी बड़ी दादी के जिम्मे रहा। हमारी बड़ी दादी यानी बप्पा की पत्नी का देहांत हम लोगों के जन्म से बहुत पहले हो गया था। हमारे बाबा यानी छोटे पंडित भी मेरे जन्म के एक-डेढ़ साल के भीतर ही क्षय रोग के चलते दिवंगत हो गए थे।
जब मैंने होश संभाला और गर्मी की छुट्टियों में गांव जातातो वहां बप्पा और मेरी दादी (जेठ और भयो) ही रहते थे। बप्पा जब भी आंगन में आते तो खंखारते हुए आते थे। बलरामपुरबहराइचगोंडा आदि जिलों में भयो यानी अनुज वधु को देखनाछूना निषिद्ध माना जाता है। उतने बड़े घर में सिर्फ दो प्राणी जो एक दूसरे से बोल बतिया भी नहीं सकते थेअपने-अपने सुख-दुख नहीं कह सकतेकैसे दशकों जीवन काटा होगाइसकी सिर्फ कल्पना की जा सकती है। कभी कभी गांववाले बप्पा को चिढ़ाते-सारी जिंदगी जिनके लिए तुमने परिश्रम करते हुए काट दीवे लोग शहरों में मौज से काट रहे हैं और भग्गन भाई तुम्हें बुढ़ापे में यहां छोड़ रखा है। भग्गन मिसिर यानी बप्पा के सिर्फ पांच बेटियां ही थींबेटा नहीं। गांव वालों के चिढ़ाने पर कई बार तो बप्पा आग बबूला हो जाते थे। अपने भाई के बेटों से नाराज हो जातेलेकिन जैसे ही कोई गांव पहुंच जाताउनका सारा गुस्सा काफूर हो जाता। गर्मी की छुट्टियों में जैसे ही हम लोग गांव पहुंचतेबप्पा खिल जाते। मुझे याद हैएक बार मैंने बप्पा से पूछा था-बप्पा! जब आप बड़े थेतो बाबा की मौत आपसे पहले कैसे हो गईतब मैं यह समझता था कि जो जिस क्रम में पैदा हुआ हैउसकी मौत भी उसी क्रम में होगी।
बप्पा ने गहरी सांस लेते हुए कहा था-सब भगवान  की मर्जी। बप्पा धार्मिक बहुत थेलेकिन रूढ़िवादी या ढोंगी कतई नहीं थे। वे नहाए बिना कुछ खाते नहीं थे। भूजा-चबैना या गुड़ जरूर अपवाद थे। नहाने के बाद शालिग्राम और महादेव को नहला-धुलाकर फूल अक्षत चढ़ाने के बाद खाना खाने से पहले शालिग्राम को भोग लगाते उसके बाद खाना खाते थे। बिना नहाये चौके में किसी का भी प्रवेश वर्जित था। खाना बनाने वाली महिला के लिए जरूरी था कि वह बिना सिला कपड़ा पहनकर खाना बनाए। पेटीकोट और ब्लाउज पहनकर चौके में घुसना निषिद्ध था। बप्पा भी जाड़ागर्मीबरसात सभी मौसमों में सिर्फ धोती पहनकर खाना खाते थे।
बात बप्पा के बल की हो रही थी। हमारे गांव में लोकनाथ प्रजापति और फौजदार प्रजापति नाम के दो भाई थे। लोकनाथ को हम लोग लोकई काका कहते थे। वे हमारे यहां हरवाही (खेत जोतने का काम) करते थे। उन्हीं दिनों बप्पा एक बैल लाए थे जो मरकहा था। एक दिन की बात है। बप्पा उसे चारा-पानी खिलाकर दूसरी जगह बांधने के लिए रस्सी पकड़कर आगे चलेतो उस बैल ने पीछे से सींग मारकर बप्पा को गिरा दिया। बप्पा ठहरे दुर्वासा के साक्षात अवतार। यहां एक बात बताता चलूं।बप्पा बताते थे कि हम लोगों का गोत्र घित्र कौशल्य है। जहां तक मेरी जानकारी हैघित्र नाम के कोई ऋषि नहीं हुए हैं। यह दरअसल अत्रि कौशल्य का अपभ्रंश है। कौशल प्रदेश में रहने वाले अत्रि वंशीय ब्राह्मणों का यह गोत्र हैयही अत्रि वंशीय ब्राह्मण जब दक्षिण भारत में गएतो आत्रेय कहे गए। खैर..बप्पा तमतमाकर उठे और बैल की सींग पकड़ ली। दोनों ओर से बल प्रयोग होने लगा। लोकई खड़े तमाशा देख रहे थे। धीरे-धीरे गांव के कुछ लोग जमा हो गए। लोगों ने कहा-क्या भग्गन भाई...तुम भी बैल के साथ बैल बन गए। वह तो पशु हैतुम्हें तो सोचना चाहिए।’ और बप्पा ने बैल की सींग पर से पकड़ ढीली कर दी।
बप्पा की एक खूबी और थी और वह यह कि वे गाली शास्त्र के प्रोफेसर थे। कहने को तो वे कक्षा दो तक ही पढ़े थे। कक्षा दो में ही उनके किसी मुंशी जी ने किसी गलती पर एक हाथ जमा दिया था। बसबप्पा को क्रोध चढ़ आया और उन्होंने उस मुंशी जी को उठाकर पटक दिया। सांड की तरह क्रोध में फनफनाते बप्पा ने मुंशी जी का कुर्ता फाड़ाफिर धोती  खोल कर दांत से हलका कट लगाकर कई टुकड़ों में कर दिया। वह धोती और कुर्ता किसी भी तरह से पहनने लायक नहीं रहा। उन दिनों पुरुष धोती के नीचे जांघिया या चड्ढी नहीं पहनते थे। बप्पा दो दिन तक अरहर के खेत में छिपे रहे बिना कुछ खाए पिये। दूसरे दिन शाम को बप्पा के बप्पा उन्हें पकड़कर लाए और स्कूल जाने से उन्हें मुक्ति मिल गई। हांतो बात बप्पा के गाली शास्त्र में विशेषज्ञ होने की हो रही थी। बप्पा खुश होतेतो बहन और बेटी की गाली देते। बप्पा नाराज हुए तो समझो बहन-बेटी की गाली कहीं गई नहीं है। कुत्ताबिल्लीगाय-बैल से लेकर निर्जीव पदार्थ तक उनकी गाली के दायरे में थे। आंगन में कोई बिल्ली घुस आई और बप्पा की नजर पड़ गई,तो बप्पा उसे ललकारते हुए कहते थे-आओ...आओ..भौजी...तोहरे... (इसके बाद इतनी अश्लील गाली कि सुनने वाले की कनपटी तक लाल हो जाती थी)। दादी बप्पा की गाली सुनकर तिलमिला जाती थीं। जेठ से कुछ कह तो नहीं पातींलेकिन कई बार जब बर्दाश्त नहीं होतातो वे झिड़क देती थीं-काहे आपन जुबान गंदी करते हैं। जानवरों को भी नहीं छोड़ते हैं। बगल में रहने वाली पहलवानिन आजी तो अक्सर दादी से कहती थीं-बापी बहुत गरियाते हैं। अरे..गाली भले ही कुत्ते-बिल्ली को देते होंलेकिन अंग तो हम औरतों का ही होता है। इन सबके बावजूद बप्पा को न सुधरना थान सुधरे। मोमिन का एक बहुत प्रसिद्ध शेर है-गुजरी तमाम उम्र इश्के बुंता में मोमिनअब आखिरी उम्र में क्या खाक मुसलमां होंगे।

दादी या पहलवानिन आजी की आपत्ति अपनी जगह जायज थी। लेकिन बप्पा ने बचपन से ही भाषा का जो संस्कार ग्रहण कर लिया थावह मरते दम तक नहीं छूट सकता था। हम सभी भाई थोड़ी सी भी शरारत करतेतो बप्पा आग बबूला हो जाते। गालियों का मधुर गान शुरू हो जाता।

1 comment:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, जोकर “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    ReplyDelete